'ये इश्क़ नहीं आसाँ बस इतना समझ लीजै, इक आग का दरिया है, और डूब के जाना है'! बस एक सोच लगता रहा आज तक, कि जैसे लगते हैं,'काँटों की सेज', 'टेढ़ी खीर', 'लोहे के चने', इत्यादि! सोचते थे, खुला है आकाश,और ज़रूरत नहीं है पंखों की! उड़ता रहता है मन का पंछी, देखता रहता है,'सितारों से आगे जहाँ और भी हैं'! भटकता रहता है आवारा, कभी यहाँ कभी वहाँ! क्योंकि भय नहीं है, 'सम्पाती' की तरह झुलस कर धरासायी हो जाने का,कोशिश करते हुए,छू लेने की,सूर्य को! मगर 'सपने सच नहीं हुआ करते', की तरह ही देखते थे,'ख्याली पुलाव' को! मगर दिखा दिया, एक विषाणु ने, कि कुछ भी हो सकता है! होनी-अनहोनी से, परे नहीं होती है कोई सोच! मगर हक़ीक़त है की आग का दरिया है इश्क़,और डूब के जाना है महबूब की ज़िन्दगी जिन के बिन हम अधूरे हैं! 'पावन'