मौलाना मुहम्मद इसहाक ‘अलम’ मौलाना मुहम्मद इसहाक़ ‘अलम’, ‘सीमाब’ अकबराबादी साहब के शार्गिद थे और मुज़फर नगर के बाशिन्दे थे। आपने अरबी तथा फ़ारसी की उच्च शिक्षा प्राप्त की और अध्यापन का कार्य किया। आपने कसीदे, मसनवी, रूबाई, नज़्म और गजलें सभी कुछ कहीं लेकिन गजल-गोई में विशेष महारत हासिल की। आपके दो दीवान ‘सलसबील’ और ‘कौसरो-तसनीम’ नाम से प्रकाशित हुए। आपके कलाम में तसव्वुफ काफी नज़र आता है। ईश्वर की उपासना में लीन इंसान, इंसानियत को भूल जाता है। ऐसे लोगों को ‘अलम’ साहब ने फरमाया कि खुदा कामिल1 इंसानों में ही मिल सकता है, पूजा उपासना से नहीं। इसलिए इंसान के लिए इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है। तलाशो-जुस्तजू2 की सरहदें अब खत्म होती हैं। खुदा मुझको नज़र आने लगा इंसाने-कामिल में।। इंसान को मुश्किलों से नहीं घबराना चाहिये। जो दुश्वारी से डरते हैं वे नादान होते हैं। इस बात का बयाँ देखिये- हुआ करती है दुश्वारी से ही आसानियाँ पैदा। बड़े नादान है मुश्किल को जो मुश्किल समझते हैं।। जो इंसान नम्र स्वभाव का है और अहंकारी नहीं उसका मर्तबा आस्मान से भी ऊँचा होता है- खाकसारी3 का है गाफ़िल ! बहुत ऊँचा मर्तबा। यह जमीं वोह है कि जिस पर आस्माँ कोई नहीं।। सुब्होशाम सिज़्दे करने वाले के मन में अहंकार रह गया तो उसके सारे सिज़्दे बेकार है। बेफ़ायदा है सिज़्दा-गुज़ारी सुब्हो-शाम। जब दिल ही झुक सका न सरे-बन्दगी के साथ।। 1. कामिल- पहुँचे हुए; 2. तलाशो जुस्तजू- ढूंढ़ना और चाहना; 3. ख़ाकसारी- विनम्रता, आजिज़ी। जो लोग इस लोक और परलोक में सुखों की कामनाओं से उपासना करते हैं उनकी बन्दगी व्यर्थ है और वह उनकी परेशानी का सबब बन सकती है- तलब में दोनों आलम की झुका रक्खा है क्यों सर को। यह रस्मे-बंदगी एक दिन अज़ाबे-दाइमी1 होगी।। हर खुशी का अंजाम गम होता है और हर हँसने वाला एक दिन रोता है यही इस संसार का नियम है- ऐ महवे-निशाते-फ़स्ले गुल2 ! अंजामे खुशी ग़म होता है। फूलों की तरह जो हँसते हैं, इक रोज वो गिरियाँ 3 होते हैं।। अपनी हर असफलता पर इंसान तकदीर को कोसता है। वह अपने प्रयत्नों की कसर को नहीं देखता और सब्र नहीं रखता। प्रयत्न करते रहने से समय के साथ सब कठिन काम आसान हो जाते हैं- तद्बीर ही तेरी नाक़िस4 थी, तकदीर को तूँ इल्ज़ाम न दे। कर सब्र ज़रा, कारे-मुश्किल5 सब वक्त पर आसाँ होता है।। जो हद से ज्यादा ऊँची उड़ान भरता है वह अन्त में धोखा खाता है- हद से ज्यादा चमने-दहर6 में उड़ने वाले। देगी घोखा तुझे बेज़ाबितए-परवाज़7 कहीं।। अब अलम साहब की इसी अंदाज की एक गज़ल पेश करता हूँ- जहाँ में सोजे-मुहब्बत का तर्जुमाँ 8 न मिला। जबाने-शम्अ पै परवाने का बयाँ न मिला।। कहाँ था नब्ज़-शिनासे-चमन9 वोह दुनिया में। बहारे-गुल10 में जिसे पहलु-ए-खिजाँ 11 न मिला।। मैं रहने-जब्र11 हूँ, तू इख्तियार12 का मालिक। मेरे फ़साने से यह अपनी दास्ताँ न मिला।। अज़ल से गर्मे-सफ़र13 हूँ मगर मुझे अब तक। बिछड़ गया था मैं जिससे, वोह कारवाँ न मिला।। क़फ़स में और नशेमन में रह के देख लिया। कहीं भी चैन मुझे जेरे-आस्माँ 14 न मिला।। 1. अज़ाबे-दाइमी- स्थाई कष्ट; 2. महवे निशाते फस्ले गुल-बहार की खुशी में लिप्त; 3. गिरियाँ- रोना; 4. नाकिस- अपूर्ण, दृषित; 5. कारे मुश्किल- कठिन कार्य; 6. चमने दहर- संसार का बाग़; 7. बेज़ाबितए परवाज़- अनियंत्रित उड़ान; 8. तर्जुमाँ-वर्णन करने वाला; 9. नब्ज़ शिनासे-चमन- नब्ज़ जानने वाला; 10. बहारे गुल- फूलों की बहार; 10. पहलु ए खिजाँ- पतझड़ का संकेत; 11. रहने जब्र- संयम रखने वाला; 12. इख़्तियार- अधिकार, नियंत्रण; 13. ग़र्मे सफ़र- यात्रारत; 14. जेरे आस्माँ- आस्माँ तले। सभी ने हश्र में उनसे कहा फ़साना-ए-दिल। मुझे यहाँ भी ‘अलम’ मौका-ए-बयाँ न मिला।। हरेक नक़्शे-क़दम1 रोजे-हश्र देख लिया। तलाश जिसकी थी मुझको वोह बेवफ़ा न मिला।। कई लोगों को तूफाँ से निस्बत होती है, साहिल से नहीं। खासकर आशिकी में। ऐसे आशिक नाकमियाबी से ही आश्ना होते हैं मंजिल से नहीं। देखिये क्या अंदाज है इस बात के बयाँ करने का- देखिये अब कौन सा तूफान जगाता है हमें। मुँह छिपाकर सो रहे हैं दामने-साहिल2 से हम।। सामने मंजिल है और आहिस्ता उठते हैं कदम। पास आ कर हो रहे हैं दूर फिर मंजिल से हम।। कामयाबी में भी है नाकामयाबे-जिन्दगी। ऐन मंजिल पर नहीं है आश्ना3 मंजिल से हम।। जब इंसान वफा के बदले सिर्फ जफ़ा पाता है तो उसका हर वादे पर एतबार खत्म हो जाता है। अलम साहब का तजुर्बा भी ऐसा ही है- वफा के पर्दे में क्या-क्या जफ़ायें देखी हैं। निगाहे-लुत्फ पर अब मुझको एतमाद4 नहीं।। मुझे यकीं है मगर दिल को क्या करूँ कि उसे। किसी के वादा-ए-फ़रदा5 पै एतमाद नहीं।। उनका माशूक भी कुछ इस तरह से हरजाई है- नजर हैराँ जबाँ बहकी हुई सी। यह आप आखिर कहाँ से आ रहे हैं।। बयां करके सबब जोरो-जफा6 का। वफाओं को मेरी शरमा रहे हैं।। मुल्क में आजादी आई लेकिन फिर भी मुल्क के बाशिन्दों को गमों से छुटकारा न मिला। ऐसा गुलशन जिसमें कभी बिजली, कभी माली और कभी सैयाद का खतरा हो कोई शाख भला कैसे फल-फूल सकती है! मिली तो क्या सैयाद ! ऐसी आजादी। जब एक शाखे-नशेमन7 पै इख़्तियार न हो।। कहीं बिजली, कहीं गुलचीं, कहीं सैयाद का खतरा। फले-फूलेगी इस गुलशन में शाखे-आशियाँ क्यूंकर।। 1. नक्शे कदम- कदमों के निशान; 2. दामने साहिल- किनारे के आश्रय; 3. आश्ना- लगाव होना, परिचित होना; 4. एतमाद- भरोसा; 5. वादा ए फरदा- कल का वादा; 6. जोरो जफ़ा- ज़ुल्मो सितम, ज़बरदस्ती; 7. शाखे नशेमन- जहाँ घर हो वह टहनी। मुल्क के कारवाँ के अमीर से उनकी गुजारिश है कि वह थके-हारों को भी साथ लेकर ही मंजिल पर पहुँचे- थके माँदे भी मंजिल पर पहुँच जाये ब-आसानी। कोई तद्बीर ऐसी ऐ अमीरे-कारवाँ 1 कर ले।। मुसीबत के समय यूं तो दिलासा देने कई लोग आते हैं लेकिन ऐसा एक भी नहीं आता जो बिगड़ी को बनादे। लोग सिर्फ खुशी में हँस सकते हैं गम में कोई हक़ीक़ी मददगार नहीं होता-इस बात का बयाँ देखें- तस्कीन2 मुसीबत में देने को, यूँ तो जमाना आता है। ऐसा भी कोई आता है जिसे बिगड़ी को बनाना आता है।। काँटों की जबाने-तिश्ना3 से, गुलशन की हकीकत को पूछो। याराने-चमन4 इन फूलों को बस हँसना हँसाना आता है।। वैसे भी मुसीबत में न तो बहार का आना और न ही माशूक के आने का संदेश कोई अस्ल राहत दे सकती है। जिनको मुसीबत के आने की वजह ही न मालूम हो वे क्या ख़ाक मुसीबत दूर करेंगे। बहारे-गुल का मुजदा5 याने वेदे-वस्ले-जाना6 हो। मुसीबत में कोई शै वजहे-राहत7 हो नहीं सकती।। हकीकत वोह मआले-इश्क8 की क्या खाक समझेंगे। हमारे हाल से भी जिनको इबरत9 हो नहीं सकती।। आपने कई अच्छी नज़्में भी लिखीं। बसन्त ऋतु के ऊपर लिखी उनकी नज़्म के दो शेर पेशे-खिदमत हैं। फूलों के आईनों में अपने अक्स10 से वोह शरमाती है। होठों से तबस्सुम खिलता है, आँखों में हया थर्राती है।। खुद टूट के रंगी फूल कई दामन पर उसके पड़ते हैं। वोह दोशीजा11 हँस देती है, नजरों से तारे झड़ते हैं।। भर कर फूलों से दामन जब वोह अपने पाँव बढ़ाती है। हर नक्शे-कदम पर होने को कुरबान वसन्त आ जाती है।। और अन्त में एक दूसरी बेहतरीन नज़्म ‘शबाब आ रहा है’ के चन्द अशआर पेश कर मैं अलम साहब से विदा लेता हूँ- 1. अमीरे कारवाँ- काफले का सरदार; 2. तस्कीन- दिलासा, सांत्वना; 3. जबाने तिश्नाँ- प्यासी ज़ुबान; 4. याराने चमन- बस्ती के संगी साथी; 5. मुजदा- किस्सा, कहानी; 6. वेदे वस्ले जाना- माशूक का मिलने का वादा; 7. वजहे राहत- आराम का कारण; 8. मआले इश्क- प्यार का नतीजा; 9. इबरत- नसीहत; 10. अक्स- परछाई, साया; 11. दोशीजा- कन्या, सुन्दरी। शबाब आ रहा है, शबाब आ रहा है। दहकता हुआ आफ़ताब आ रहा है।। है अठखेलियों पर चमन की हवाएं। नये सिरे से फिर इन्किलाब आ रहा है।। ये सूरज है मशरिक़ में या मैकदे में। कोई ले के जामे-शराब आ रहा है।। यह कौसौ-कज़ह1 है कि बज़्मे-फ़लक2 से। मुगन्नी3 उठाए रबाब4 आ रहा है।। कँवल खिल रहा है कि होैजे-चमन5 से। उभरता हुआ आफताब आ रहा है।। * 1. कौसौ कज़ह- इन्द्र धनुष; 2. बज़्मे फ़लक- आसमान की महफ़िल; 3. मुगन्नी- गानेवाला, गायक; 4. रबाब- सारंगी; 5. हौजे चमन- बाग के कुंड में। मौलवी अब्दुल बारी ‘आसी’ उल्दानी