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A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
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7:35 PM
Article Published by : PAVAN KUMAR SHARMA,' PAAVAN &MAAHIR
शायर बेमिसाल, शायरी बा क़माल (भाग-एक) eISBN: 978-93-5296-802-2 © लेखकाधीन प्रकाशक: डायमंड पॉकेट बुक्स (प्रा.) लि. X-30 ओखला इंडस्ट्रियल एरिया, फेज-II नई दिल्ली-110020 फोन: 011-40712200 ई-मेल: ebooks@dpb.in वेबसाइट: www.diamondbook.in संस्करण: 2019 शायर बेमिसाल, शायरी बा क़माल लेखक: पवन कुमार ‘पावन’ किताब बेमिसाल-मुसन्निफ बाकमाल तहरीर (एक) यह उनवान मैंने इसलिए मुंतखब किया है, क्योंकि जनाब पवन कुमार ’पावन’ ने काफी मेहनत और काविशों से इस किताब की तरतीब की है। किताब का मुसविद्दा देखने के बाद यह कहा जा सकता है कि ‘पावन’ साहब की शायराना सोच और समझ काफ़ी गहरी है। हिन्दी-उर्दू शायरी के असनाफ, तौर-तरीके, रंग-ढंग-आहंग और हम्द, नअत, मनक़बत, मरसिया, गीत-गज़ल, हज़ल, नज़म, दोहे, रूबाई, क़तआत, क़सीदा वगैरा का फ़न अगरचे ‘पावन’ साहब ने किसी उस्ताद से सीखा हो या न सीखा हो, मग़र उनकी इस तसनीफ़ पर नज़र-ए-सानी करने के बाद यह कहना ज़रूरी है कि उन्होंने मौजूआत और लफज़ीयात की खूबसूरत माला पिरोकर इस किताब को महकते फूलों के हार की तरह सजाया संवारा है और रंग-बिरंगे फूलों का यह दिलकश हार उनके गले में बहुत खुशगवार नज़र आएगा। ऊर्दू शायरी के नुमायां और नामवर शोअरा हज़रात के मुंतखब कलाम को जिस खूबसूरती के साथ उन्होंने जमा किया है, वो यक़ीनन क़ाबिले तरीफ़ है। ‘वली’ से लेकर ‘मीर’, ‘दर्द’, ‘सौदा’, ‘सोज़’, ‘ज़ौक़’, ‘गालिब’, ‘दाग’, ‘मोमिन’, ‘नासिख’, ‘आतिश’, ‘इक़बाल’, ‘मुस्हफी’, ‘इंशा’, जैसे बुजुर्ग शोअरा तक और फिर नसीम से लेकर दीगर कई नामवर और गुमनाम शुआरा के मख़सूस कलाम को ढूंढ़कर तलाश करके एक जगह तरतीब के साथ जमा करना कोई आसान काम नहीं है। मुसन्निफ के ज़रिये इस काम को करने में कितनी मशक्कतें की गई होंगी, उन दिक्कतों, परेशानियों का अहाता करना बेहद मुश्किल है। मुझे यह किताब इसलिए भी बेहद पसंद आई है क्योंकि उन्होंने हिन्दी ज़बान में इख़्तेसार के साथ ही सही मगर शायरी के सभी असनाफ और शोअबों को शामिल कर इस किताब को शायरी की समझ रखने वालों के लिए एक बेहतरीन दस्तावेज़ की शक्ल में तैयार कर बेमिसाल कारनामा अंजाम दिया है। ‘पावन’ साहब की इस तसनीफ़ पर अपनी ताज़ा गज़ल के चंद अशआर नज़र करना चाहता हूँ। चाँद को चाँदनी दिखाऊँ क्या ? उस गज़ल को ग़ज़ल सुनाऊँ क्या ? नींद तारों को आ रही है बहुत अपने घर का पता बताऊँ क्या ? कल्पना खो गई है तारों में अपनी बच्ची को ढूंढ़ लाऊँ क्या ? हर तरफ़ कार, रेल और बसें अब समन्दर में घर बनाऊँ क्या ? आज संडे है, कल भी छुट्टी है आसमानों में घूम आऊँ क्या ? खूबसूरत बहुत हो मान लिया बाल-बच्चों को भूल जाऊँ क्या ? दरअसल संस्कृत की आखिरी शक्ल यानी खड़ी बोली की वारिस हक़ीकत में ऊर्दू ही है, जो एशिया में बसने वालों की सबसे मक़बूल तरीन जबान है और पवन कुमार ‘पावन’ ने अपनी इस किताब में ऊर्दू शायरी की तारीख से लेकर तरीक़ा-ए-कार तक थोड़ा-थोड़ा ही सही, मग़र सब कुछ जिस खुशउसलूबी के साथ जमा करने की कोशिश की है, उसकी ताईद और हौसला अफ़ज़ाई करना मेरे लिए ज़रूरी है। अमीर, कबीर, नज़ीर, बशीर को तो शायरी की दुनियाँ में सब ही जानते हैं, मगर जिनको लोग कम जानते हैं, उन शायरों के भी चुनिंदा कलाम को उन्होंने अपनी किताब में जगह देकर ऊर्दू के साथ कादारी का सबूत पेश किया है। परवरदिगार-ए-आलम से मेरी दुआ है कि पवन कुमार ‘पावन’ साहब को और भी ज़ोर-ए-कलम अता फरमाएँ-आमीन! ‒बशीर बद्र चेयरमेन मध्यप्रदेश ऊर्दू अकादमी, भोपाल अजीब से नाम की एक बामानी किताब तहरीर (दोयम) ‘शायर बेमिसाल, शायर बा क़माल’ के नाम से जो किताब आपके हाथों में है, अगर आप उसके नाम पर ग़ौर करेंगे तो वह अजीब सा मालूम होगा, लेकिन जब आप इस किताब को पढ़ना शुरू करेंगे तब यह अन्दाज़ा होगा कि एक अजीब से नाम की यह किताब अस्ल में मुफीदे-मतलब और बामानी किताब है। ‘मुफीदे-मतलब’ इस तरह कि जो हज़रात उर्दू ज़बानो-अदब का ज़ौक रखते हैं, लेकिन इसकी लिपि से वाकिफ न होने की वजह से उससे लुत्फ-अन्दोज़ नहीं हो पाते, उनके लिए‒इस किताब में अच्छा खासा मवाद मौजूद है और ‘बामानी’ इस लिए कि किताब के मुरत्तिब जनाबे पवन कुमार ‘पावन’ ने इन्तहाई मेहनत और अमीक़ मुतालअ के बाद उर्दू ज़बान के इर्तिकाई सफर में अमीर खुसरो के बाद दकनी और शुमाली हिन्द के अहम शायरों मसलन ‘वली’ दकनी, मीर तकी ‘मीर’, ‘सौदा’, मीर ‘सोज़’, ‘नासिख’, ‘आतिश’, इंशा अल्ला खाँ, ‘इन्शा’ ‘मुसहफ़ी’, ‘नज़ीर’ अकबराबादी, ‘अनीस’, ‘दबीर’, शेख इब्राहिम ‘ज़ौक’, मिर्ज़ा ‘गालिब’, मोमिन खाँ ‘मोमिन’, बहादुर शाह ‘ज़फर’, ‘अमीर’ मीनाई, ‘दाग’ देहलवी, ‘आसी’ ग़ाज़ीपुरी, ‘हफीज़’ जलंधारी, ‘असगर’ गोण्डवी, ‘जिगर’ मुरादाबादी, ‘बेखुद’ देहलवी, पंडित त्रिलोक चन्द ‘महरूम’, ‘सीमाब’ अकबराबादी, ‘आसी’ उलदनी, ‘शकील’ बदायूनी, ‘साहिर’ लुधिायानवी, और ‘मजरूह’ सुल्तानपुरी वगैरह के मुख़तलिफ मौजूआत पर लिखे गये बेहतरीन अशआर को यकजा कर दिया है, जिन्हें पढ़ कर उर्दू से नावाकिफ हज़रात भी, लुत्फ-अंदोज़ होकर यह सोचने पर मजबूर होंगे कि उर्दू शायरी महज़ हुस्नो-इश्क या गुलो-बुलबुल की शायरी नहीं है बल्कि इसमें इंसानी ज़िन्दगी से तअल्लुक रखने वाले तमाम पहलुओं पर गौरो-फिक्र का अंदाज़ भी मौजूद है। पवन कुमार ‘पावन’ की किताब का यह अंदाज़, इससे पहले लिखी गई और हिन्दी ज़बान में शाया-शुदः किताब मसलन ‘शेरो-सुखन’ (कई हिस्से) से बहुत मिलता जुलता है। लेकिन इससे पवन कुमार की इस किताब पर कोई हर्फ़ नहीं आता। इसकी वजह यह है कि पवन कुमार ‘पावन’ ने इस किताब में उर्दू शायरी के फ़न्नी रमूज़ो-निकात पर भी इस तरह रोशनी डाली है कि एक आम आदमी भी उर्दू शायरी की बुनियादी बातों से वाकिफ हो जाए। शायद इसीलिए उन्होंने किताब के शुरू के हिस्से में जहाँ उर्दू ज़बान की पैदाइश का ज़िक्र किया है, वहीं उर्दू शायरी में काम आने वाली कुछ खास इस्तलाहों को आसान ज़ुबानों में लिख दिया है ताकि ग़ैर-उर्दू दाँ हज़रात जब मुखतलिफ अशआर को पढ़े तो उन्हें इन अशआर में इस्तेमाल होने वाले लफ्ज़ों के हक़ीक़ी और मजाज़ी मानी से वाकफियत हो और वह अलग-अलग मिजाज़ के हामिल अशआर की मानवियत से पूरी तरह आगाह हो सकें। इसी वजह से कहीं-कहीं पवन कुमार ‘पावन’ ने बाज़ मुश्किल नज़र आने वाले अशआर की शरह भी लिख दी है। इससे उनकी इस किताब की इफादियत में मज़ीद इज़ाफ़ा हो गया है। मेरी नज़र में पवन कुमार ‘पावन’ की यह किताब एक मुफीदे-मतलब और बामानी किताब है। मुझे उम्मीद है कि उर्दू शायरी से दिलचस्पी रखने वालों के लिए यह किताब अहम साबित होगी। इसकी इशाअत पर मैं पवन कुमार ‘पावन’ को दिली मुबारकबाद पेश करता हूँ। प्रो. फिरोज़ अहमद अध्यक्ष उर्दू एवं फारसी विभाग राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर उर्दू शायरी; एक पंछी की नज़र तहरीर (तीन) श्री पवन कुमार ‘पावन’ साहब की यह पुस्तक उर्दू शायरी का एक इतिहास है, और इसमें उर्दू शायरी की शुरुआती जानकारी जैसे‒ग़ज़ल की व्याख्या, उसकी बुनावट, उससे संबंधित आम शब्दावली का विश्लेषण, शायरी के प्रकार और उसकी खुसूसियत व उसके ऐबों का भी विस्तार से विवरण दिया गया है। शायरी की मुसावत, उसकी सलासत, सादगी, उसकी बलागत, रवानियत, मौसीकियत, उसके तेवर, उसकी शोख़ी, तख़य्युल या बलन्दी और ऐबों में तवालीए इज़ाफत, फक्के इज़ाफत, शुतुर गुरबा, बंदिश की सुस्ती, पहलू-ए-ज़म और ऐसी तमाम जानकारियां शामिल की गई हैं। सिर्फ यह ही नहीं, बल्कि उर्दू शायरी में आमतौर पर उपयोग होने वाले बिम्ब और प्रतीक जैसे हज़रत यूसुफ, और जुलेखा, जम, जमशेद, जामे-जम, रुस्तम और हुमा, अयाज, बुलबुल, सैयाद तथा साक़ी, बुत और चारागर जैसे तमाम प्रतीकों और मिथकों को भी विस्तार से समझाया गया है। यह सभी जानकारी उर्दू शायरी का वास्तविक लुत्फ़ लेने के लिए बहुत उपयोगी और आवश्यक होती है। इस किताब में तूतीए-हिन्द ‘अमीर-खुसरो’ से लेकर हफीज़ जालंधरी तथा तमाम नामी और गुमनाम, लेकिन काबिले जिक्र, हिन्दुस्तानी शायरों तथा उनके काम की विस्तार से जानकारी दी गई है। कुल मिलाकर यह किताब देवनागरी में उर्दू शायरी का लुत्फ़ लेने वाले पाठकों के लिए एक ऐसा दरवाजा है, जिससे प्रवेश करते ही वह शायरी के उस जगमग और चमकदार संसार से रूबरू होता है, जिसके लिए वह अब तक तरस रहा था। देवनागरी और उर्दू लिपि के बीच यह पुस्तक एक पुख्ता पुल है जो एक कल्पनाशील साहित्य प्रेमी को न केवल बजरिये हिन्दी-उर्दू ग़ज़ल की यात्रा कराता है अपितु उर्दू साहित्य के इतिहास के अध्ययन के साथ-साथ हिन्दी साहित्य की समानान्तर प्रवृत्तियों को भी समझाता चलता है। दरअसल यह सिर्फ उर्दू शायरी का अध्ययन नहीं है, और न ही हिन्दी में लिखे हिन्दी साहित्य के इतिहास अध्ययनों के समानान्तर कोई प्रयास है, अपितु जमीन के कृत्रिम राजनैतिक विभाजन की तरह, हिन्दी और उर्दू में किए गए कृत्रिम विभाजन का एक समर्थ प्रतिकार भी है। मैं समझता हूं कि साहित्य के पाठक को भी साहित्य पढ़ने का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। न केवल साहित्य, बल्कि शास्त्रीय कलाओं का समग्र आनन्द लेने के लिए, श्रोताओं के कानों को आदी किया जाना चाहिए। श्रोता के अन्दर बज रहे सितार के तारों को कसा जाना चाहिए। काम यकीनन लगता मुश्किल है, क्योंकि फिलहाल तो हम साहित्यकारों और कलाकारों को भी, बिना किसी मश्क और तैयारी के लिखते ‒ गाते भुगत रहे हैं। ऐसे में पवन कुमार ‘पावन’ एक किताब लेकर आये हैं, जो न केवल इस विषय पर एक सम्पूर्ण ग्रन्थ है, परन्तु अगर आपके पास वक्त की कमी है, तो एक कुंजी भी है, और अगर समय की और अधिक कमी है, तो एक छोटा-सा गुटका भी। इसलिए मैंने इस किताब का उनुवान ‘उर्दू शायरीः एक पंछी की नज़र’ रखना चाहूँगा। इसमें पावन साहब ने गागर में सागर समोया है। इस पुस्तक की भाषा, साहित्य की भाषा नहीं है‒संगीत की भाषा है इसलिए यह पूरी पुस्तक ही ग़ज़ल/नज़्म है। वैसे भी साहित्य की भाषा छलती है जबकि संगीत की भाषा सुकून देती है। शायरी में तो शब्दों की यह मौसीकी और अधिक मानीखेज हो जाती है। मुझे इस किताब को, आलोचनात्मक ग्रंथ कहने में भी एतराज नहीं है। अंग्रेजी के प्रथम श्रेणी के आलोचक, ‘मैथ्यू अरनाल्ड’ जिसने आलोचना की नींव डाली है, आलोचक को साहित्य का कोरा व्याख्याकार ही नहीं माना है, अपितु एक जन आलोचक भी माना है, जो विद्यार्थियों को परीक्षा पास कराने के लिए नहीं लिख रहा होता, अपितु उस जन सामान्य के लिए लिख रहा होता है, जो साहित्य का औपचारिक विद्यार्थी तो नहीं है लेकिन एक पाठक है, जो उसे पढ़ता है और उसे गुनता भी है। उससे कुछ सीख कर वह खुद भी कुछ करने का प्रयत्न करता है। आलोचना की इस परिभाषा पर यह पुस्तक खरी उतरती है। मैं उम्मीद करता हूं कि पवन कुमार ‘पावन’ की यह अनूठी आलोचना पुस्तक, सभी सुखन फहमों और उर्दू शायरी के शौकीनों के लिए फायदेमंद एवं उपयोगी साबित होगी। इसलिए मैं इस किताब का उनुवान उर्दू शायरी : एक पंछी की नज़र रखना चाहूँगा। इसमें पावन साहब ने गागर में सागर समोया है। ‒विजय वाते अतिरिक्त महानिदेशक (पुलिस) मध्यप्रदेश, भोपाल पेश लफ्ज़ (प्राक्कथन) हम जो देखते हैं सोचते हैं, महसूस करते हैं, उस सब का अलफाज़ में बयान करना आसान काम नहीं है। लेकिन कम लफ्ज़ों में ज़्यादा बात, यही शायरी या कविता की खासियत है। एक शेर, एक पद्यांश, और चंद लाइनों की एक कविता या गज़ल में इतना तसव्वुफ, इतना फ़लसफा छुपा होता है कि उस पर पूरी एक किताब लिखी जा सके। इसीलिए यह इतनी दिलकश लगती है। ज़िन्दगी को सही तरीके से समझने की लियाकत आम इंसान में होना मुश्किल है। इसे हासिल करने के वास्ते हमें तजुर्बात से गुज़रना पड़ता है। ज़िन्दगी के कई अहसासात की समझ असल में आदमी को तब आती है जब वह उनसे रू-ब-रू होता है। चाहे वह मुहब्बत हो या अदावत हो, मिल्लत हो या नफरत, इन जज़्बात की फितरत इंसान को तभी समझ में आती है जब वह इन जज़्बात से मुखातिब होता है। मैंने देखा कि उर्दू के नुमायाँ और नामवर शोअरा हज़रात का कलाम अस्ल में उनकी ज़िन्दगी का एक आईना है और उसमें उनके ज़िन्दगी भर के तजुर्बात का निचोड़ है। मुझे इन सबको पढ़कर ऐसा लगा कि कलम की कुव्वत से ज़िंदगी के तजुर्बात को, उसके फ़लसफे को लफ़्ज़ों में/अशआर में पूरी तरह ढाला जा सकता है। शायर या कवि के दिल पर जो गुज़रती है और वह जो कल्पना करता है उसे अपने फन से अलफ़ाज़ का जामा पहना कर लोगों के सामने पेश कर देता है। इस बात का इज़हार ‘साहिर’ लुधियानवी साहब ने बड़ी साफगोई से इस शेर में किया है‒ दुनिया ने तजुरूबातो हवादिस की शक्ल में। जो कुछ मुझे दिया है, वह लौटा रहा हूँ मैं।। और शायरी या कविता की समझ रखने वाले (सुखन फहम) उसकी कविता, गज़ल और नज़्म आदि पर फड़क उठते हैं। इन कविताओं, गज़लों और नज़्मों में ढाला गया फ़लसफा, तसव्वुफ और उनका सोजो गुदाज़ उसके मर्म/दिल को छू लेता है। किसी शेअर पर हमारी भावनाएं अचानक प्रकट हो जाती है क्योंकि उसमें हमारे दिल की बात होती है तो हमारी प्रतिक्रिया देख कर लोग अंदाज़ा लगा लेते हैं कि हमारे दिल पर क्या गुज़र रही है। इस फ़लसफ़े का बयान जनाब मिर्ज़ा गालिब साहब ने इस शेर में किया है‒ खुलता किसी पे क्यों मेरे दिल का मुआमला। शेरो के इंतिखाब (चुनाव) ने रूसवा किया मुझे।। मैंने उर्दू शायरी के नुमायां और नामवर शोअरा के कलामों को पढ़ना और तरतीब से जमा करना शुरू किया तो कई परेशानियाँ सामने आईं। कई बार शेरों, गज़लों, नज़्मों को समझने में मुझे वक्त लगा और वे मुझे तभी समझ में आई जब मैंने उर्दू भाषा के जानकारों और सुख़न फ़हम दोस्तों से मशविरा किया और उनमें प्रयुुक्त लफ्ज़ों के अस्ल मायने और संदर्भ उनसे जाने। मुझे शायरी के असनाफ़, तौर-तरीके, रंग ढंग, आदि को भी समझना पड़ा और उर्दू भाषा की व्याकरण की भी जानकारी हासिल करनी पड़ी। मैंने इन सबकी जो भी जानकारी हासिल की है उसे हू ब हू इस किताब में तफसील से लिखा है, ताकि इसके पाठक को उसे हासिल करने के लिए कहीं भी भटकना न पड़े। मैं जो एक बार इस काम में लगा तो फिर जैसे इसी का होकर रह गया क्योंकि इसमें मुझे बहुत मज़ा आया। हालांकि मैं रदीफ़, काफ़िये मिलाकर वज़न वाले शेर और गज़लें तो नहीं लिख पाया लेकिन थोड़ी बहुत तुकबंदी ज़रूर करने लगा। उर्दू शायरी के असनाफ़, उसके तौर तरीके, रंग-ढंग, और भाषा मैंने किसी उस्ताद से नहीं सीखी और इस बात की कमी मुझे हमेशा अखरती रही। मगर मैंने इस किताब को इस तरतीब से लिखने की कोशिश की है कि इसे पढ़ने वाले इन सब की तालीम हासिल कर सकें और यदि चाहें तो उसे आज़मा भी सके। मैंने शायरी में काम लिये गये लफ़्ज़ों के जो मायने किताब के हर पेज के नीचे लिखे हैं वे कहीं-कहीं पाठकों को सही नहीं लग सकते हैं क्योंकि हर ज़ुबान के समान उर्दू ज़ुबान में भी एक लफ्ज़ के कई मायने होते हैं। शायर भी एक ही मायने के कई शब्दों को काम में लेकर अपनी शायरी में रंगो रवायत पैदा करता है। कई मायने वाले लफ्ज़ों का इस्तेमाल अलग-अलग माहौल/मंज़र/हालात से रू-ब-रू कराने के लिये भी किया जाता है। शायरी में लफ्ज़ो के मायने से उनके भावों की ज़्यादा अहमियत होती है इसलिये पाठकों से मेरी इल्तिजा है कि यदि कहीं मायने सही न बैठते हों तो शायरी को उसमें शरीक किये गये भावों से समझें। शायर जब यह कहता है कि- ‘मैं तुम पर मरता हूँ’, तो इसका यह मायना नहीं होता कि वह वास्तव में किसी पर जान दे देता है, सिर्फ यही मतलब है कि वह किसी को दिलो जान से चाहता है। आप यदि यह बात समझेंगे तो इस किताब का और शेरो शायरी का आपको ज़्यादा लुत्फ़ आयेगा। इस किताब को लिखने का मकसद यही है कि पढ़ने वालो को शायरी के सभी पहलू समझ में आ जायें और उनके दिली जज़्बात को अलफ़ाज़ मिल जायें। मुझे यकीन है कि मैं इस मकसद को हासिल कर पाउँगा। मेरा यह मकसद इस किताब की तीन ज़िल्दों में जा कर पूरा होगा और मुझे यकीन है कि खुदा मुझे इस काम में कामयाबी नसीब करेगा। मैंने इस किताब में उर्दू शायरी के शुरूआत करने वाले पहले हिन्दुस्तानी शायर अमीर खुसरो से लेकर हाल में शायरी कर रहे शोअरा हज़रात बशीर बद्र, दुष्यंत कुमार, आदि तक की गज़लों नज़्मों आदि को एक धागे में पिरोने की कोशिश की है। अमीर खुसरो साहब ने हिन्दावी भाषा का और उसमें कविता लिखने का आगाज़ किया जो बाद में उर्दू बन कर बेमिसाल शायरी और बेनज़ीर शायरों की भाषा बनी। मीर तकी ‘मीर’ साहब ने अपने फन से उर्दू शायरी को जिस बुलंदी पर पहुँचाया, मिर्ज़ा गालिब ने उसी को अपने तजुर्बात और फ़लसफे से एक नई अदाइगी बख़्शी। ‘दाग’ देहलवी साहब ने उर्दू शायरी में रंगो रवायत का नया सिलसिला शुरू किया तो ‘जिगर’ मुरादाबादी साहब ने उसे एक नई बुलंदी बख़्शी। इकबाल साहब ने इंकलाबी शायरी की तो साहिर और मज़रूह साहब ने शायरी की बुनियाद पर गीतों के महल बनाए। मेरे लफ़्ज़ों में इतनी कुव्वत, इतनी ताब नहीं कि मैं इन शोअरा हज़रात की वह तारीफ कर सकूं जिसके कि वे हकदार हैं। मेरी पहुँच बहुत कम है और इन शायरों के कद बहुत ऊंचे हैं। मैं हक़ीकत में वह तायर हूँ जिसके पर बहुत छोटे हैं और जो परवाज़ बहुत ऊँची लेना चाहता है। मैं इन शोअरा हज़रात और उनकी उम्दातरीन शायरी के बारे में कुछ भी कह सकने की सलाहियत/अख़्तियार नहीं रखता। मैं जानता हूं कि मैं इन हज़रात के सामने कुछ भी नहीं। मैंने सिर्फ इन शोअरा हज़रात के कलामों को पढ़ा है, समझने की कोशिश की है, और उनमें से चंद मख़सूस/मुंतखब कलाम ढूंढ़े हैं, और उन्हें एक नई तरतीब से जमा किया है। मैं आपको यह किताब पेश कर रहा हूँ और मुझे पूरी उम्मीद है कि मेरी यह कोशिश साज़गर होगी और आपको पसंद आयेगी। इस किताब को तरतीब देने में मेरे कई मददगार रहे हैं। उन्होंने न केवल मेरी मदद की है बल्कि वक्त बा वक्त मेरी हौसला अफज़ाई भी की है। मैं नहीं जानता कि मैं कैसे उनका शुक्रिया अदा करूँ। मैं केवल यही कहूँगा कि यह किताब उन्हीं की मदद और हौसला अफज़ाई से वजूद में आई है। सबसे पहले मैं जनाब ‘बशीर’ बद्र साहब का ममनून हूँ कि उन्होंने इस किताब की तहरीर लिखी और इसे शायरी का एक बेहतरीन दस्तावेज़ बताया, इसे फूलों का एक बेहतरीन हार बताया। वे बहुत नामवर शायर हैं और मेरी किताब के बारे में उनकी यह दाद मुझ नाचीज़ पर सिर्फ एक इनायत है, करम है। वे खुद उर्दू शायरी के माहताब हैं, और उन्होंने शायरी में बुलंदियाँ हासिल की है। उनको मेरी यह कोशिश अच्छी लगी यह जानकर ही मुझे सुरूर सा हो रहा है। उन्हें मेरी नवाज़िश, मेरा शुक्रिया! उनसे सिर्फ यही अर्ज है कि - न मैं चाँद हूँ, न मैं चाँदनी। न मैं नाज़ हूँ, न मैं नाज़नीं।। चिरागेगौरेगरीबाँ हूँ फ़कत। मैं कहाँ से लाऊँ वो रोशनी।। मैं उन सभी हाजरात का शुक्रगुज़ार हूँ जिन्होंने मेरी रहनुमाई की है और इस किताब के बारे में मेरी हर सोच को शक्ल दी है और उसे अमली जामा पहनाया। है। मैं सबसे पहले जनाब अब्दुल अज़ीज़ साहब का शुक्रिया अदा करूंगा जिन्होंने तकरीबन हर वक्त मेरा साथ दिया और हर चंद कोशिश करके मेरी हर परेशानी, जो मुझे किताब लिखने में सामने आई, का हल खोजने में मुझे मदद दी। मैं जनाब इकबाल मसूद साहब जो मध्य प्रदेश उर्दू अकेडमी के सचिव हैं का और जनाब डॉ औसाफ शाहमीरी खुर्रम साहब जो अखिल भारतीय मुस्लिम त्यौहारों समिति के अध्यक्ष हैं का भी शुक्रगुज़ार हूँ जिन्होंने मेरी किताब की तरतीब को पढ़ा और उसे जनाब बशीर बद्र साहब के सामने रखा। इन दोनों हज़रात ने मेरी बहुत हौसला अफज़ाई की। मैं जनाब डॉ फिरोज़ अहमद साहब जो कि राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर में उर्दू एवं फारसी भाषा विभाग के अध्यक्ष हैं का भी शुक्रगुज़ार हूँ कि उन्होंने मेरी किताब और उसके मुसन्निफ पर गौर फरमाया और अपनी तहरीर में उसे ‘मुफीदे-मतलब’ और ‘बामानी’ बताया। मैं जनाब राजेन्द्र अवस्थी जी जो कि एक सुप्रसिद्र लेखक हैं और जिन्होंने मेरी एक दूसरी हिन्दी तसनीफ ‘अंतस का महाभारत’ का प्राक्कलन लिखा था, का भी शुक्रगुज़ार हूँ क्यूंकि इस किताब के छपने की कार्यवाही उन्हीं के आशीर्वाद से तकमील हुई। मैं जनाब आनन्द अवस्थी साहब जो कि मेरे ज़िगरी दोस्त हैं और पेशे से जादूगर हैं का भी शुक्रगुज़ार हूँ जिनके जादू से मेरी हर मुश्किल वक्त बा वक्त आसान होती रही, लिखने का सिलसिला आगे बढ़ता रहा और छपने की मंज़िल तक पहुँचा। मेरे दोस्त जनाब विजय वाते साहब जो पुलिस के आला अफ़सर हैं मगर जिनका मिज़ाज़ शायराना है, का भी मैं अहसानमंद हूँ कि उन्होंने मेरी तसनीफ़ पढ़ी और अपनी तहरीर में उसे एक अनूठी आलोचनात्मक तसनीफ़ बताया। यह सब लोग मुझ पर मेहरबान हुए क्यूँ कि खुदा मुझ पर मेहरबान था। मैं उस मेहरबान से यह दुआ करता हूँ, कि वे जैसे मुझ पर करमफर्मा हुए हैं, मेरी किताब पर भी हो और उसके पढ़ने वालों पर भी। किताब आपको सुपुर्द करने की खुशी के साथ‒ आपका ‒पवन कुमार ‘पावन’ E-mail Address: pavan_sharma 06@yahoo.com Tel. No. 0141-2520470, 0141-2385371 Mobile: 94133-39900 फेहरिस्त-मज़ामीन (अनुक्रमणिका) किताब बेमिसाल-मुसन्निफ बाकमाल (तहरीर-एक) अजीब से नाम की एक बामानी किताब (तहरीर-दोयम) उर्दू शायरी एक पंछी की नज़र (तहरीर-तीन) पेश लफ्ज़ (प्राक्कथन) यामीनुद्दीन अब्दुलहसन अमीर-खुसरो उर्दू शायरी का सफरनामा-I उर्दू शायरी का सफरनामा-II मुहम्मद मीर तकी ‘मीर’ मिर्ज़ा मुहम्मद रफ़ी ‘सौदा’ सैय्यद मुहम्मद मीर ‘सोज’ ख्वाजा मीर ‘दर्द’, ‘कायम’ चाँद पुरी, पीर मुहम्मद ‘असर’, अब्दुल हई ‘ताबां’, मीर गुलाम हसन ‘हसन’ गुलाम हमदानी ‘मुसहफ़ी’ सैयद इंशा अल्लाह खां ‘इंशा’ शेख क़लन्दर अलीबख़्श ‘जुरअत’, सआदत यार खाँ ‘रंगीं’
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