शायर बेमिसाल, शायरी बा क़माल (भाग-दो) eISBN: 978-93-5296-806-0 © लेखकाधीन प्रकाशक: डायमंड पॉकेट बुक्स (प्रा.) लि. X-30 ओखला इंडस्ट्रियल एरिया, फेज-II नई दिल्ली-110020 फोन: 011-40712200 ई-मेल: ebooks@dpb.in वेबसाइट: www.diamondbook.in संस्करण: 2019 शायर बेमिसाल, शायरी बा क़माल लेखक: पवन कुमार ‘पावन’ किताब बेमिसाल-मुसन्निफ बाकमाल तहरीर (एक) यह उनवान मैंने इसलिए मुंतखब किया है, क्योंकि जनाब पवन कुमार ’पावन’ ने काफी मेहनत और काविशों से इस किताब की तरतीब की है। किताब का मुसविद्दा देखने के बाद यह कहा जा सकता है कि ‘पावन’ साहब की शायराना सोच और समझ काफ़ी गहरी है। हिन्दी-उर्दू शायरी के असनाफ, तौर-तरीके, रंग-ढंग-आहंग और हम्द, नअत, मनक़बत, मरसिया, गीत-गज़ल, हज़ल, नज़म, दोहे, रूबाई, क़तआत, क़सीदा वगैरा का फ़न अगरचे ‘पावन’ साहब ने किसी उस्ताद से सीखा हो या न सीखा हो, मग़र उनकी इस तसनीफ़ पर नज़र-ए-सानी करने के बाद यह कहना ज़रूरी है कि उन्होंने मौजूआत और लफज़ीयात की खूबसूरत माला पिरोकर इस किताब को महकते फूलों के हार की तरह सजाया संवारा है और रंग-बिरंगे फूलों का यह दिलकश हार उनके गले में बहुत खुशगवार नज़र आएगा। ऊर्दू शायरी के नुमायां और नामवर शोअरा हज़रात के मुंतखब कलाम को जिस खूबसूरती के साथ उन्होंने जमा किया है, वो यक़ीनन क़ाबिले तरीफ़ है। ‘वली’ से लेकर ‘मीर’, ‘दर्द’, ‘सौदा’, ‘सोज़’, ‘ज़ौक़’, ‘गालिब’, ‘दाग’, ‘मोमिन’, ‘नासिख’, ‘आतिश’, ‘इक़बाल’, ‘मुस्हफी’, ‘इंशा’, जैसे बुर्जुग शोअरा तक और फिर नसीम से लेकर दीगर कई नामवर और गुमनाम शुआरा के मख़सूस कलाम को ढूंढ़कर तलाश करके एक जगह तरतीब के साथ जमा करना कोई आसान काम नहीं है। मुसन्निफ के ज़रिये इस काम को करने में कितनी मशक्कतें की गई होंगी, उन दिक्कतों, परेशानियों का अहाता करना बेहद मुश्किल है। मुझे यह किताब इसलिए भी बेहद पसंद आई है क्योंकि उन्होंने हिन्दी ज़बान में इख़्तेसार के साथ ही सही मगर शायरी के सभी असनाफ और शोअबों को शामिल कर इस किताब को शायरी की समझ रखने वालों के लिए एक बेहतरीन दस्तावेज़ की शक्ल में तैयार कर बेमिसाल कारनामा अंजाम दिया है। ‘पावन’ साहब की इस तसनीफ़ पर अपनी ताज़ा गज़ल के चंद अशआर नज़र करना चाहता हूँ। चाँद को चाँदनी दिखाऊँ क्या ? उस गज़ल को ग़ज़ल सुनाऊँ क्या ? नींद तारों को आ रही है बहुत अपने घर का पता बताऊँ क्या ? कल्पना खो गई है तारों में अपनी बच्ची को ढूंढ़ लाऊँ क्या ? हर तरफ़ कार, रेल और बसें अब समन्दर में घर बनाऊँ क्या ? आज संडे है, कल भी छुट्टी है आसमानों में घूम आऊँ क्या ? खूबसूरत बहुत हो मान लिया बाल-बच्चों को भूल जाऊँ क्या ? दरअसल संस्कृत की आखिरी शक्ल यानी खड़ी बोली की वारिस हक़ीकत में ऊर्दू ही है, जो एशिया में बसने वालों की सबसे मक़बूल तरीन जबान है और पवन कुमार ‘पावन’ ने अपनी इस किताब में ऊर्दू शायरी की तारीख से लेकर तरीक़ा-ए-कार तक थोड़ा-थोड़ा ही सही, मग़र सब कुछ जिस खुशउसलूबी के साथ जमा करने की कोशिश की है, उसकी ताईद और हौसला अफ़ज़ाई करना मेरे लिए ज़रूरी है। अमीर, कबीर, नज़ीर, बशीर को तो शायरी की दुनियाँ में सब ही जानते हैं, मगर जिनको लोग कम जानते हैं, उन शायरों के भी चुनिंदा कलाम को उन्होंने अपनी किताब में जगह देकर ऊर्दू के साथ कादारी का सबूत पेश किया है। परवरदिगार-ए-आलम से मेरी दुआ है कि पवन कुमार ‘पावन’ साहब को और भी ज़ोर-ए-कलम अता फरमाएँ-आमीन! ‒बशीर बद्र चेयरमेन मध्यप्रदेश ऊर्दू अकादमी, भोपाल