ग़ज़ल- बाँचिए तो सुब्ह का अख़बार है ये ज़िन्दगी, नापिए तो वक़्त की रफ़्तार है ये ज़िन्दगी। ढालते अपनी समझ से हम इसे आकार में, क्या ग़जब का सोचिए किरदार है ये ज़िन्दगी। भाग्यवादी मानते, सब हो रहा है भाग्य से, जागरूकों के लिए दस्तार है ये ज़िन्दगी। दस्तार= सिर की पगड़ी, आत्मसम्मान शक्तिशाली के कई अपराध करती माफ़ ये, निर्बलों के वास्ते तो दार है ये ज़िन्दगी। आपदा में ढूँढते अवसर जो हैं, उनके लिए, कुछ नहीं बस एक कारोबार है ये ज़िन्दगी। जो नहीं तरजीह देते आदमीयत को कभी, दोस्तो उनके लिए धिक्कार है ये ज़िन्दगी। कर रहा मेहनत समझ के वक़्त के हालात, जो मैं कहूँ, उसके लिए गुलजार है ये ज़िन्दगी। किरदार=चरित्र, दार=फाँसी का फंदा, तरजीह= प्राथमिकता, गुलजार=ख़ूबसूरत बगीचा, सुन्दर उपवन 'Maahir'