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A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
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7:48 PM
Article Published by : PAVAN KUMAR SHARMA,' PAAVAN &MAAHIR
श्रीमद्भगवद्गीता : कर्मक्षेत्रे-रणक्षेत्रे :अध्याय ६ : आत्मसंयम योग : क्रमश : श्लोक १५ : ध्यानयोगी का परमात्म- तत्व में विलीन होना : युंजन एवम् सदा आत्मानम् योगी नियतमानस : शान्तिम् निर्वाणपरमाम् मत्संस्थाम् अधिगच्छति ॥१५॥ योगी वश में किए निज चित्त को निज आत्म को मेरे स्वरूप में स्थित किए । प्राप्त कर लेता मुझमे अवस्थित परमानन्द की पराकाष्ठा निमज्जित शान्ति को ॥१५॥ योगी की परमात्म-स्थिति : “योगी नियतमानस :” - जिसका मन पर अधिकार है वह नियतमानस : है ।परमात्मा के सिवाय उसका किसी से सम्बन्ध नहीं रहता । “निर्वाणपरमा शान्ति “ - परमात्मतत्व की प्राप्ति होने पर ही परम शान्ति होती है । जबकि संसार के त्याग से शान्ति प्राप्त होती है । योगिराज संत ज्ञानेश्वर ने तो इस अवस्था के बारे में यहाँ तक कहा है: जीवात्मा शरीर के सहयोग से परमात्मा से मिलकर उसके साथ एकत्व को प्राप्त कर लेता है । इसलिए उस अनुभव की वार्ता वाणी के हाथ नहीं आती जिससे संवाद रूपी गाँव में प्रवेश किया जा सके। Paavan Teerth.
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