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A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
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5:59 PM
Article Published by : PAVAN KUMAR SHARMA,' PAAVAN &MAAHIR
साथ लेकर चल रहे जो झूठ की ऊँँचाइयाँ, हर जगह वो पा रहे हैं, काम में, आसानियाँ। सत्य का सूरज चला जिस पल से पश्चिम की तरफ़, तब से लम्बी हो रही हैं घूरतीं परछाइयाँ। मैं अकेला एक पल को भी न रह पाया कभी, साथ मेरे रह रहीं हैं सैकड़ों तनहाइयाँ। हम प्रकृति के साथ करते ही रहे खिलवाड़ बस, हो रहीं इसकी वजह से हर तरफ़ बर्बादियाँ। राजनेता कुछ, कभी परिपक्व हो पाएंगे क्या? बचपने की छोड़ जो पाए न हैं अठखेलियाँ। जो भी मिलता और ही कुछ बन के मिलता दोस्तो, मुश्किलों में फँस गई हैं दोस्तो आसानियाँ। आमजन को पंथ की कुछ दी गई ऐसी अफीम, टूटती उनकी नहीं हैं देख लो मदहोशियाँ। गुल खिलाएंगी किसी दिन देखिएगा आप सब, हो रहीं जो नुक्कड़ों पर देर तक सरगोशियाँ। मुफ़लिसों की मुश्किलों को देखना हो देख लो, बढ़ रहीं शमशान में जो आजकल आबादियाँ। 'Maahir'
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