ग़ज़ल- भाषणों से आपकी कोई बदलता है कहाँ, ख़ुद को बदलो तो बदल जाएगा ये सारा समां। मैं अगर हूँ दोस्त सबका दोस्त है दुनिया मेरी, फ़िक्र मेरी भी करेंगे ये ज़मीं-ओ-आसमां। यह ग़म-ए-दौरां से लड़कर जीतता अब तक रहा, हाँ ग़म-ए-दिल पर रुका है आज मेरा कारवाँ। जल भरे बर्तन के जैसे, जो हो जल में तैरता, आत्मा-परमात्मा के मध्य दिखता है जहां। जानते दुनिया को जिनसे, मौन वो रब के लिए, इंद्रियां सक्षम कहाँ, इस काम में "शेखर" यहाँ। 'Maahir'