कह रहा था और कुछ वो, कर रहा है और कुछ, और इसके दरमियां ही हो गया है और कुछ। वक़्त पर करता नहीं है, वक़्त की परवाह जो, पेच उसका वक़्त भी कसता रहा है और कुछ। बिस्मिलों की बात कैसे हाकिमों तक जाएगी? जो बयां वो दे रहे हैं हलफ़िया, है और कुछ। दलबदल करके वो अबतक, राज-सुख पाते रहे, लोग बस कहते रहे, उनकी सजा है और कुछ। उनके दल के मुजरिमों को, पारसा समझा गया, क्या सियासत में बताने को बचा है और कुछ? वो ज़ियादा जोर देकर बात को समझा रहा, लग रहा मुझको इसी से, माज़रा है और कुछ। सीख दे- दे कर चुकी पैगम्बरों की इक क़तार, आदमी फिर भी यहाँ करता रहा है और कुछ। धर्मग्रंथों, रीतियों के नाम पर वो ठग रहे, ज़िन्दगी जीने का उनका फ़लसफ़ा है और कुछ। आमजन के हक़ की ख़ातिर जो निज़ामत से लड़ा, दोस्तो वो ज़िन्दगी को जी सका है और कुछ। शासकों पर अब चुनावों का असर होता कहाँ ? दोस्तो इनका तो हल अब शर्तिया है और कुछ। 'Maahir'