गज़ल इश्क़ में सचमुच असर है क्या करूँ। चाँद मेरे ताक़ पर है क्या करूँ।।१ लिख दिया है इश्क़ पर जबसे कलाम। रक्स-ए-बिस्मिल सा क़मर है क्या करूँ।।२ हो गई बेकाबू दिल की धड़कनें। दिल जवाँ अब मुख़्तसर है क्या करूँ।।३ सुन लिया है दिल ने दिल की इल्तिज़ा। दिल तुम्हारा मुंतज़र है क्या करूँ।।४ इश्क़ में डूबा हूॅं सर से पांँव तक। डूबने का भी हुनर है क्या करूँ।।५ रहगुज़र वाक़िफ है मेरी चाल से। मंज़िलो पे बस नज़र है क्या करूँ।।६ 'दीप' दिल पर कब रहा है इख़्तियार। इश्क़ की मुश्किल डगर है क्या करूँ।।७ MAAHIR