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A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
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8:36 PM
Article Published by : PAVAN KUMAR SHARMA,' PAAVAN &MAAHIR
ग़ज़ल ********* लम्हा-लम्हा तेरी यादों का सज़ा रक्खा है। दर्द-ए-ग़म अब भी इस सीने से लगा रक्खा है।।१ जब से छूटा है तेरा साथ मेरी जान-ए-जाँ। दिल के सहरा में भी ग़म माल-ओ-मता रक्खा है।।२ करवटें ले ले के गुज़रती है मेरी हर रातें। किसने बिस्तर पे मेरे काँटा बिछा रक्खा है।।३ क्यों नीं ग़लती है मेरी दाल मुहब्बत वाली। बरसों से हमने तो अदहन भी चढ़ा रक्खा है।।४ दिल के इस हुजरे में करती है बसर ख़ामोशी। मौज़-ए-नशात पर तो पहरा भी लगा रक्खा है।।५ 'Maahir'दिल-ए-दश्त में मूरत है एक नुरानी सी। हमने उस महबूब का तो नाम-ए-ख़ुदा रक्खा है।।६ लम्हा/-लम्हा/ तेरी/ यादों/ का सज़ा/ रक्खा/ है। दर्द-ए-/ग़म अब/ भी इस/ सीने/ से लगा/ रक्खा है।।१ जब से/ छूटा/ है ते/रा साथ/ मेरी/ जान-ए-/जाँ। दिल के/ सहरा/ में भी/ ग़म मा/ल-ओ-मता/ रक्खा/ है।।२ करवटें ले ले/ के गुज़र/ती है/ मेरी/ हर रा/तें। किसने/ बिस्तर/ पे मे/रे काँ/टा बिछा/ रक्खा/ है।।३ क्यों नीं/ ग़लती/ है मे/री दा/ल मुहब्/बत वा/ली। बरसों/ से हम/ने तो/ अदहन/ भी चढ़ा/ रक्खा/ है।।४ दिल के/ इस हुज/रे में/ करती/ है बसर/ ख़ामो/शी। मौज़-ए/नशात/ पर तो पहरा/ भी लगा/ रक्खा/ है।।५ 'Maahir'दि/ल-ए-दश्/त में मू/रत है/ एक नु/रानी/ सी। हमने/ उस मह/बूब का/ तो ना/म-ए-ख़ुदा/ रक्खा/ है।।६ 'Maahir'
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