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A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
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8:39 PM
Article Published by : PAVAN KUMAR SHARMA,' PAAVAN &MAAHIR
एक ग़ज़ल- जब भी अलग दिखें कुछ,इमकान ज़िंदगी में। इंसां रहे न उनसे अनजान ज़िंदगी में। इमकान=संभावना, सामर्थ्य डाकू भी हैं पुजारी, साधू भी हैं पुजारी, हर खेल के हुए हैं मैदान ज़िन्दगी में। इंसानियत पे देखे, हमले जो हर तरफ़ से, तो आ गया है यारो तूफ़ान ज़िंदगी में। इंसानियत से दूरी जितनी बनाए थे जो, उतने हुए ज़ियादा हलकान ज़िन्दगी में। हलकान=परेशान, थके हुए, हैरान सुख-शान्ति के लिए तो,करनी पड़ेगी मेहनत, कुछ भी कहाँ है सोचो आसान, ज़िंदगी में। कुछ फ़र्ज़ पूरे कर दूँ ,बस इसलिए ही यारो, ज़िंदा हूँ आफ़तों के दौरान ज़िंदगी में। 'सच' को ही 'सच' कहा है,'Maahir'ने आज तक, इससे मिली है उनको, पहिचान ज़िन्दगी में। 'Maahir'
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