कविता : शिक्षा-व्यवसाय! ×××××××××××××××××× जबसे कि स्कूल,निजी हो गए, ऑनर कमाने में बिजी हो गए, स्कूल टीचर हो गए सर,मैडम, होमवर्क भेजने ईजी हो गए! इंटरव्यू होता अब पेरेंट्स का, पैरेंट-टीचर्स मीटिंग का खेल, टीचर्स सभी पैसेंजर-लोकल, गार्जियन बने एक्सप्रेस-मेल! ट्यूटर भी वैसे हैं अफलातून, उनके बड़े हैं अनोखे कानून, फी स्कूल से ट्यूटर तक की, जनवरी को भी बना दे जून! कोरोना दे गया और बहाना, 'ऑन-लाइन' पढ़ना-पढ़ाना, अब सबसे मुश्किल है काम, बच्चों से मोबाइल हटवाना। सरकार अभी इतना कर दे, थोड़ा सा जो ध्यान इधर दे, मां-बाप से पढ़ कर बच्चा, परीक्षा,सेंटर पर जाकर दे! सरकार ही कराए इम्तिहान, जांच ले वह बच्चों का ज्ञान, बिचौलिया से इन स्कूलों से, अभिभावक की छूटे जान! किसी को ये बुरा लग जाय, वो कहें,नकारात्मक-उपाय, सरकारी स्कूलों को लेकिन, लील गया शिक्षा-व्यवसाय! Paavan