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A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
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7:04 PM
Article Published by : PAVAN KUMAR SHARMA,' PAAVAN &MAAHIR
ग़ज़ल- मेरी ग़ज़लों में मिलती है, माटी की बू-बास ज़रा, कल की झलक सहित है इनमें वर्तमान, इतिहास ज़रा। मर्म भाव का जब जानोगे तब ही कुछ पा सकते हो, सच को जानो, आजाएगा, जीवन में उल्लास ज़रा। जीवन के वो सूत्र मिलेंगे, जो ज्ञानी कहते आए, सब ऋषि, मुनि, जैन, बौद्ध, कबीर, मार्क्स और रैदास ज़रा। कितने चढे मुलम्मे इन पर, चेहरों को कुछ समझो तो, आमआदमी की पीड़ा का तब होगा अहसास ज़रा। आज सत्य के संवाहक ख़तरे में ख़ुद को डाल रहे, ऐसे लोगों के कामों से दिखती हमको आस ज़रा। मीठा बोलें, सज धज के, जो दोषी हैं अपराधों के, देवतुल्य उनको कहते हैं जो हैं चमचे ख़ास ज़रा। राष्ट्र, धर्म, सभ्यता, आदि के मीठे सपने दिखला कर, वो कहते झेलो चुप रह कर मिलता है जो त्रास ज़रा। वो कहते हैं सत्य वही है जो वो कहते अपने मुँह से, भीषण गर्मी को अब बोलो तुुम, मादक मधुमास ज़रा। 'Maahir'
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