एक ग़ज़ल- भुला के हक़ीक़त जो सोता रहेगा, वो अश्क़ों से दामन भिगोता रहेगा। ग़रीबों को ज़ालिम सताते रहे हैं, न जागे वो, तब तो यह, होता रहेगा। किनारे-किनारे ही तैरा जो, उसको, डुबोता है दरिया, डुबोता रहेगा। वही मंज़िलें पा सका है, जो इंसां, इरादों में ख़्वाबों को बोता रहेगा। उसे फ़स्ल वो काटनी ही पड़ेगी, जिसे ज़िन्दगानी में बोता रहेगा। लुटा तू, पिटा तू, मगर कह रहे वो, तमाशा हुआ है, ये होता रहेगा। अदीबो क़लम हक़ की ख़ातिर उठाओ, नहीं तो ग़लत जो है, होता रहेगा। अदीब= साहित्यकार। 'Maahir'