Kavita (Brahmin) जो जगा नहीं,वह रोयेगा! जो बचा उसे भी खोएगा! सब एक कंठ मिलकर गाओ! बट चुके बहुत अब और नहीं! बिन मिले हमारा ठौर नहीं! यह रात बड़ी भय वाली है! आँधी ने भुजा उठा ली है! बुझ रहे हमारे दीप सकल! डाकू के उमड़े हैं दल बल! स्थिति बिल्कुल त्रेता वाली! जब उठा परशु था विकराली! जब न्याय विमर्दित होता है! सारा समाज जब रोता है! तब ब्राह्मण पोथी तज देता! सौगंध विपुल यह ले लेता! जब तक अधर्म न डोलेगा! तब तक यह लोहित खौलेगा! टंकार परशु की हो जाये! सच आज फैसला हो जाये! Paavan Teerth