एक ग़ज़ल- प्रेम में इन्कार भी इक़रार है, सोचिये क्या आपको इन्कार है। कण से कण के बीच जो दिखता लगाव, ज़िन्दगी का एक ये आधार है। प्रेम भाषा बंधनों से है परे, प्रेम तो बस भाव का संसार है। प्रेम में दुनिया समायी है मेरे, चर-अचर हर शय से मुझको प्यार है। शर्त कोई प्रेम में होती नहीं, तर्क के आगे का ये संसार है। प्रेम होता है स्वत: ही दोस्तो, जो हुआ करने से वो व्यापार है। तुम अभी से प्रेम में घबरा गए, इस सफ़र में कष्ट अपरम्पार है। प्रेम जिसको हो गया उसके लिए, प्रेम का हर कष्ट सुख का द्वार है। मशवरे के वास्ते आये हो तुम, प्रेम में हर मशवरा बेकार है। तुम बहक सकते हो कुछ सँभलो ज़रा, मेरे वश में दिल कहाँ अब यार है। ढूँढते हो प्रेम का कारण अबस, प्रेम का बस प्रेम ही आधार है। प्रेम से अस्तित्व में आया जहाँ, प्रेम ही संसार का आधार है। 'Maahir'