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A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
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7:10 PM
Article Published by : PAVAN KUMAR SHARMA,' PAAVAN &MAAHIR
श्रीमद्भगवद्गीता : कर्मक्षेत्रे - रणक्षेत्रे : अध्याय ५: कर्मसंन्यास योग : क्रमश : श्लोक ७ : कर्मयोगी का सभी प्राणियों के साथ तादात्म्य स्थापन : योगयुक्त : विशुद्धात्मा विजितात्मा जितेन्द्रिय : । सर्नभूतात्मभूतात्मा कुर्वन् अपि न लिप्यते ॥७॥ अन्त:करण से शुद्ध , मन को वश किए इन्द्रियजित कर्मयोगी । निज आत्म को ही देखता सब प्राणियों में सब कर्म करते भी, उनमें लिप्त होता है नहीं ॥७॥ योगयुक्त कर्मयोगी के लक्षण और व्यवहार: योगयुक्त कर्मयोगी का अन्त: करण शुद्ध,मन और इन्द्रियों को जीते हुए अपनी आत्मा को सब प्राणियों में जानते हुए, सभी कर्म करते हुए भी राग और द्वेष से मुक्त हुआ सभी कर्मों को करता हुआ भी उनमें लिप्त नहीं होता अथवा वह कर्मबन्धन से मुक्त हुआ रहता है । 'Paavan Teerth '
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