प्रस्तुत है एक ग़ज़ल- कठिन वो रास्ते अपनी जगह हैं, रवाँ कुछ क़ाफ़िले अपनी जगह हैंl अँधेरे खुश हैं, सूरज ढल रहा जो, वो जुगनू नाचते अपनी जगह हैं ज़ुबाँ खुलने से पहले लोग देखो, इशारे भाँपते अपनी जगह हैंl करें जमहूरियत की बात लेकिन, अधर उनके सिले अपनी जगह हैं। जमहूरियत=प्रजातंत्र क़फ़स की तीरगी के बाद भी तो, दहकते हौसले अपनी जगह हैं। क़फ़स=क़ैदखाना, तीरगी=अँधेरा बधाई चंद्रयानों की है उनको, ज़मीं के मसअले अपनी जगह हैं। मसअले= प्रकरण 'Maahir'