Samvidhaan. देश की जनता ने, कुछ ऐसा लिखा है संविधान, लक्ष्य यह इंसानियत का, दे रहा है संविधान। ये बनाया है हमीं ने, "लोग हम भारत के" हैं, विश्व में सबसे सुखद ये, खिल रहा है संविधान। "लोक" के आलोक को, विस्तार देने के लिए, इस धरा को, स्वर्ग करने को, लिखा है संविधान। "लोग भारत के" जो हैं, उनकी तरक्की के लिए, देश-दुनिया को सजाने, को लिखा है संविधान। "राज्य गण" का ही रहे, औ काबिलों को पद मिलें, "आमजन की बात" कहने, को लिखा है संविधान। लोकमत की धारणा को, सच बनाने के लिए, सोच जनता की जगाने, को लिखा है संविधान। "पंथ से निरपेक्षता" हो, सोच “मानवता" रहे, वास्ते जनहित के जन ने, लिख दिया है संविधान। आमजन के वास्ते, हर काम हो जाए सहज, रंक को सामर्थ्य देने, को बना है संविधान। राष्ट्रपति के वास्ते भी, वोट की दरकार हो, इक नया इतिहास रचने, को रचा है संविधान। सब तरह की हो यहाँ, "आजादी" जनहित के लिए, ख़्वाब जनता के सजाने, को लिखा है संविधान। “नीति के निर्देश” हैं तो, “मूल हैं अधिकार” भी, “मूल कर्तव्यों” को शामिल, कर सजा है संविधान। "अवसरों की" हो यहाँ, "समता" सभी के वास्ते, ज़िन्दगी नैतिक बनाने, को लिखा है संविधान। "एकता” हो देश में, "इंसानियत” उद्देश्य हो, राज्य जनता का बनाने, को लिखा है संविधान। हैसियत का अब कोई, अंतर न हो इंसान में, भेदभावों को मिटाने, को लिखा है संविधान। देश की हर हाल में क़ायम रहे "इंटीग्रिटी", देश को "संप्रभु" बनाने, को खिला है संविधान। बाद करने के "सृजित” ये, "आत्म अर्पित" भी किया, दोस्तो जनहित की ख़ातिर, लिख दिया है संविधान। - वीरेन्द्र कुमार शेखर।