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A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
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8:30 PM
Article Published by : PAVAN KUMAR SHARMA,' PAAVAN &MAAHIR
श्रीमद्भगवद्गीता : कर्मक्षेत्रे- रणक्षेत्रे :अध्याय ५ : कर्मसंन्यास योग : क्रमश : श्लोक ४ : सांख्य (संन्यास) और कर्मयोग दोनों का लक्ष्य परमात्मा की प्राप्ति: सांख्ययोगौ पृथक् बाला : प्रवदन्ति न पण्डिता : । एकम् अपि आस्थित: सम्यक उभयो : विन्दते फलम् ॥४॥ नासमझ ही सांख्य और योग को पृथक कर हैं जानते न कि ज्ञानी हैं कभी । एक में ही भली विधि स्थित हुआ नर परमात्म-फल पाता सुनिश्चित ॥४॥ युद्ध के परिप्रेक्ष्य में समझिए : सारे विकल्पों के असफल होने पर धर्मराज युधिष्ठिर के नेतृत्व में युद्धक्षेत्र में खड़े होकर अर्जुन का परिस्थिति से निराश होकर शस्त्र छोड़ कर शास्त्र का आधार लेकर पलायन करने और उसे उचित ठहराते देख भगवान श्री कृष्ण ने दूसरे अध्याय में सांख्य की चर्चा कर अर्जुन को स्थितप्रज्ञ के रूप के दर्शन कराए । इसके बाद परवर्ती अध्यायों में विस्तार से कर्मयोग के विभिन्न पहलुओं पर अपना वक्तव्य प्रारम्भ किया । इस पर विचार करते हुए विनोबा जी के अनुसार: “कर्मयोग मार्ग में भी है और मुकाम पर भी है ।परन्तु संन्यास सिर्फ़ मुक़ाम पर ही है, मार्ग में नहीं । यदि यही बात शास्त्र की भाषा में कहनी हो, तो कर्मयोग साधन भी है और निष्ठा भी , परन्तु संन्यास सिर्फ़ निष्ठा है, निष्ठा का अर्थ है, अंतिम अवस्था ।” 'Paavan Teerth'
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