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A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
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7:22 PM
Article Published by : PAVAN KUMAR SHARMA,' PAAVAN &MAAHIR
श्रीमद्भगवद्गीता : कर्मक्षेत्रे-रणक्षेत्रे : अध्याय ६ : आत्मसंयम योग क्रमश : श्लोक ७ : आत्मा का परमात्मा में लय करने की विधि : जितात्मन : प्रशान्तस्य परमात्मा समाहित : । शीतोष्णसुखदु:खेषु तथा मानापमानयो : ॥७॥ स्वयं के आत्म को करके विजय शान्त अन्त:करण से । जो शीत-उष्ण , सुख-दु:ख को, और मान और अपमान को सम देखता उसको नित्य ही हैं प्राप्त रहते परमात्मा ॥७॥ परमात्मा में लीन होने की विधि : इस श्लोक में परमात्मा शब्द आत्मा के लिए ही प्रयुक्त है। देह का आत्मा सामान्यतः सुख-दु:ख, शीत-उष्ण, मान-अपमान में पड़ कर प्रकृति के गुणों से बद्ध रहने के कारण जीवात्मा कहा जाता है और इन गुणों से मुक्त होकर इन्द्रिय - संयम से वहीं परमात्मा हो जाता है ।तत्वत: शरीर में रहने वाला आत्मा ही परमात्मा है । देखिए: उपद्रष्टा अनुमन्ता च भर्ता भोक्ता महेश्वर: । परमात्मा इति च अपि उक्त: देहे अस्मिन् पुरुष: पर : ॥२२/ अध्याय १३॥ एक और महत्वपूर्ण बात श्लोक में शरीर. मन और विवेक को स्थिर रखने की, शीत-उष्ण, सुख-दु:ख और मान-अपमान को मनको जीत कर प्रशान्त रहने के लिए कहकर कही गयी है । Paavan Teerth.
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