ग़ज़ल- बेवजह, आज तक कुछ हुआ ही नहीं, इससे आसां कोई फ़लसफ़ा ही नहीं। फ़लसफ़ा=फ़िलासफ़ी, दर्शन माँगता है यह बैसाखियाँ उम्र भर, झूठ पैरों पे ख़ुद के चला ही नहीं। चाहता हूँ, कि सबको, मिले चैन-सुख, चाह में है मेरी, बस जज़ा ही नहीं। जज़ा=फल, परिणाम कितने किरदार मैं जी चुका आजतक, दिल है प्यासा अभी तक भरा ही नहीं। किरदार=चरित्र उस लड़ाके का तो हश्र सोचो ज़रा, दुश्मनों का जिसे है पता ही नहीं। हश्र=परिणाम छोड़ देता है कोशिश सँवरने की जो, वो बशर दोस्तो फिर बचा ही नहीं। बशर=व्यक्ति ज़ुल्म की वो हदें तोड़ते ही रहे हद है! अहसास तुम को हुआ ही नहीं। क्या वजह है, वो जिससे, यह दुनिया बनी, उसका अब तक मिला है पता ही नहीं। पंथ की ओट में बस ग़ुलामी मिली, था नशे में, वो यह जानता ही नहीं। 'Maahir'