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A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
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6:53 PM
Article Published by : PAVAN KUMAR SHARMA,' PAAVAN &MAAHIR
प्रस्तुत है एक ग़ज़ल- सोच में जब ज़रा सादगी आ गई, ज़िन्दगी में मेरी, हर ख़ुशी आ गई। काम जनहित के जब भी वो करने लगे, बीच में इक न इक बेबसी आ गई। दर्दो ग़म जब ज़ियादा बढ़े दोस्तो, जां बचाने मेरी दिल्लगी आ गई। रास्ता उसका रोका तरक़्क़ी ने जब, बाढ़ पे शान्त सी वो नदी आ गई। हो चुकी जब तबाही, तो टूटा भरम, फिर समझ दोस्तो, काम की आ गई। कोशिशों ने भी जब हार मानी नहीं तब अँधेरों से भी रोशनी आ गई। 'सच' को 'सच' कह सका जब सलीके से मैं, लोग कहने लगे शायरी आ गई। बन्दगी=प्रार्थना, भरम=भ्रम, आतिशी=आग जैसी 'Maahir'
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