ग़ज़ल ---- दोस्तो,बह्र-ए-खफ़ीफ़ में लिखने का सिलसिला जारी है.और मैं फिर से आपकी बज़्म में हाज़िर हूँ एक और नयी ग़ज़ल के साथ,उम्मीद है आपको पसंद आएगी.बराए मेहेरबानी मुलाहिज़ा फ़रमाएँ,अर्ज़ किया है- कपड़े सबके उतारे जाएँगे जब अदम में पुकारे जाएँगे//1 सबका मुंसिफ़ वहाँ पे बैठा है उसकी पेशी में सारे जाएँगे//2 जो हैं बालिग़ उन्हें मिलेगा सबक़ जो हैं बच्चे,दुलारे जाएंगे//3 दूसरों को जिन्होंने मारा है वो भी इक रोज़ मारे जाएँगे//4 गर तुम्हारी रिज़ा है हम हस्ती मुफ़्लिसी में गुज़ारे जाएँगे//5 लेके रिश्ता हमारी शादी का चाँद के घर सितारे जाएँगे//6 तुम भी आलोचना किए जाओ हम भी ग़लती सुधारे जाएँगे//7 ज़िंदगी कट गयी है लेकिन'राज़' आगे किसके सहारे जाएँगे//8 शब्दार्थ- ------------- •अदम-परलोक •मुंसिफ़-न्याय या इंसाफ़ करने वाला व्यक्ति,न्यायिक,न्यायाधीश,न्याय करने वाला,न्यायकर्ता •पेशी-न्यायालय या अधिकारी के सामने किसी अभियोग या मुकदमे के पेश होने और सुने जाने की कार्रवाई •बालिग़-वयस्क,समझदारी की आयु तक पहुँचा हुआ •रिज़ा-स्वीकृति,मंज़ूरी •हस्ती-वुजूद,जीवन,प्राण,ज़िदगी,संसार,दुनिया,प्राणीवर्ग,मख्लूक़ात,सामर्थ्य,मक्दूर •मुफ़्लिसी-मुफ़्लिस होने की अवस्था या भाव,दरिद्रता,निर्धनता