ग़ज़ल- बस 'इफ''बट'में ही दिन गँँवाया न कर, तेरा जो तजुर्बा है,जाया न कर। बहुत झूठ बोले,न सच मर सका, हक़ीक़त से नज़रें चुराया न कर। उन्हें तेरी तकलीफ़ देती है सुख, लगे चोट तो तड़फड़ाया न कर। हुई ज़िंदगी जुर्रतों से शुरू, इसे सोच में ही गँवाया न कर। कभी दिल जो टूटा जुड़ेगा नहीं, हसीं ख़्वाब'यूँ ही'दिखाया न कर। सियासत में बातों के मतलब कहाँ? , ये झांसे हैं झांसों में आया न कर! 'गिनीपिग' न मुझको समझ दोस्त अब, किया जो न ख़ुद वो सुझाया न कर। ज़हां के ग़मों से नज़र फेर कर, मुहब्बत की ग़ज़लें ही गाया न कर। 'Maahir'