ग़ज़ल- आदमी को ये क्या हुआ यारो, रोग को मानता दवा यारो। जो है सबका उसे भी दुनिया में, कर रहे सब से हम जुदा यारो। जो नहीं हो सकी थी दिल से,वो, कैसे करती असर दुआ यारो। इश्क़ का रोग लग गया तब तो, काम करती कहाँ दवा यारो। आज मासूमियत को ढूँढा जब, आइना देख के डरा यारो। ज़िन्दगी कैसे मुझको जीनी है, दो न अब इस पे मशविरा यारो। कामयाबी में आज 'मा ज़ ह र' की, उसकी चाहत का है नशा यारो।