ग़ज़ल- बोलते थे और कुछ वो मानते थे और कुछ. लोग समझें इस से पहले वो किए हैं और कुछ। वक़्त पर करता नहीं है,वक़्त की परवाह जो, पेच उसका वक़्त भी कसता रहा है और कुछ। बिस्मिलों की बात कैसे हाकिमों तक जाएगी? जो बयां वो दे रहे हैं हलफ़िया,है और कुछ। बिस्मिल=घायल,हल्फिया बयान=शपथ लेकर दिया गया बयान दलबदल करके वो अबतक,राज-सुख पाते रहे, लोग बस कहते रहे,उनकी सज़ा है और कुछ। उनके दल के मुजरिमों को,पारसा समझा गया, क्या सियासत में बताने को बचा है और कुछ? पारसा=पवित्र वो ज़ियादा जोर देकर बात को समझा रहे, लग रहा मुझको इसी से,माज़रा है और कुछ। सीख दे-दे कर चुकी पैगम्बरों की इक क़तार, आदमी फिर भी यहाँ करता रहा है और कुछ। धर्मग्रंथों,रीतियों के नाम पर वो ठग रहे, ज़िन्दगी जीने का उनका फ़लसफ़ा है और कुछ। फ़लसफ़ा=दर्शन,फिलोसफी आमजन के हक़ की ख़ातिर जो निज़ामत से लड़ा, दोस्तो वो ज़िन्दगी को जी सका है और कुछ। निजामत= व्यवस्था