ग़ज़ल- आधुनिकता झेलने को बोलिए तैयार हैं, घर में घुस के आज हमला कर रहे बाज़ार हैं। सोच अपनी कुंद रख के लोग जो देते हैं वोट, आदमीयत के लिए वो लोग तो बेकार हैं। पास जिनके धन ज़रूरत से अधिक है,देेख लो, लग रहा है ज़िदगी से आज वो बेज़ार हैं। कुछ अगर गहराई से सोचें,तो पायेंगे यही, आपदाओं के तो जैसे हम भी हिस्सेदार हैं। आपदाओं तक में दिखते लोग कुछ बेफिक्र से, हैं वही चिंतित यहाँ पर लोग जो बेदार हैं। अब पता करना बहुत मुश्किल है झंडा देख कर, आज नेता इस तरफ़ हैं या कि वो उस पार हैं। हम करें उपभोग अब संसाधनों का,सोच के, पीढ़ियों के वास्ते हम-आप ज़िम्मेदार हैं। बेज़ार = खिन्न, ऊबे हुए बेदार= जागरूक