skip to main |
skip to sidebar
RSS Feeds
A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
![]() |
![]() |
8:18 PM
Article Published by : PAVAN KUMAR SHARMA,' PAAVAN &MAAHIR
ग़ज़ल- इल्म के साथ जब फ़िक्र भी आ गई, शायरी में लगा,जान सी आ गई। साथ देने को हम-आप राज़ी हुए, साथ देने को तब हर खुशी आ गई। साथ तनहाइयाँ तब कहाँ रह सकीं, याद कुछ जिस घड़ी आपकी आ गई। देर तक उसने मुझको न सोने दिया, फिर जगाने मुझे रोशनी आ गई। वक़्त ने ऐसे सूरत बदल दी मेरी, आइना देखते ही हँसी आ गई। कोशिशें मैंने कीं तो अँधेरों से भी, देखते-देखते राह-सी आ गई। सोच पर भी लगा बंद अब दोस्तो, आदमी की कहाँ ज़िन्दगी आ गई। आज मक़्तूल पे जुर्म साबित करे, किस गिरावट पे यह मुंसिफ़ी आ गई। कुछ उसूलों पे भी बात होने को थी, क्या कहूँ बीच में दोस्ती आ गई। फेसबुक नाम जैसे ही उसने सुना, मरते-मरते उसे साँस-सी आ गई। जो है क़ातिल,उन्हें,वो मसीहा लगे, क्या ग़जब दोस्तो बेख़ुदी आ गई। उनको देखा तो ये मोजिज़ा हो गया, लब हिले और मुझे शायरी आ गई।
![]() |
Post a Comment