ग़ज़ल- हुआ जब शेर कोई अनकहा-सा, लगा लम्हा वो मैंंने जी लिया-सा। कमी मेरी बताता जब भी कोई, मुझे वो टोकना लगता दुआ-सा। मेरे आशिक़ की ये ज़िंदादिली है, मिला हर बार पहली मर्तबा-सा। हुआ वर्षों पुराना इश्क़ अपना, लगे है वाकिया हो हालिया- सा जो अपने होश में यारो नहीं है, जताता है वो ख़ुद को नाख़ुदा-सा। ज़ुबां का काम लेता वो नज़र से, किसी से इश्क़ है उसको हुआ-सा। किया है इश्क़ इतनी सादगी से, कभी लगता मुझे वो बेवफ़ा-सा। न बोले देर तक आपस में वो पर, लगा हर लम्हा जैसे बोलता-सा। नहीं जो कह सका,वो वक़्त ए रुख़सत, दिखा लब पे कहीं सहमा हुआ-सा। नाख़ुदा= नाव चलाने वाला (नेतृत्व प्रदान करने वाला) -