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A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
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8:09 PM
Article Published by : PAVAN KUMAR SHARMA,' PAAVAN &MAAHIR
न ग़म से,न आँसुओं से,न दीवानगी से, हम वाक़िफ़ नहीं थे आपसे पहले किसी से। ज़िंदा रखीं बुज़ुर्गों की हमने रिवायतें, दुश्मन से भी मिले तो मिले आजिज़ी से। सब सर-फिरी हवाओं को दुश्मन बना लिया, रौशन हुये थे लड़ने को इक तीरगी से। साँसें महक रही हैं,निगाहों में नूर है, आज मिल के आये हैं इक शख्स से। सूरज तो सिर्फ़ दिन के उजाले का है, हम हैं चराग़,लड़ते हैं अंधेरी रात से। बदनाम हो रहा है मुक़द्दर तो बे-सबब, बर्बाद हैं ख़ुद अपने अमल की कमी से।
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