अष्टावक्र संहिता अध्याय १ : आत्मानुभूति का निर्देश एको द्रष्टासि सर्वस्य मुक्तप्रायोऽसि सर्वदा । अयमेव हि ते बन्धो द्रष्टारं पश्यसि इतरम् ॥७॥ तू एक द्रष्टा सभी का पर मुक्त सबसे सर्वदा । बंधन तेरा मात्र इतना तू देखता निज को अलग ॥७॥ अहम् कर्ता इति अहम् मानमहाकृष्ण अहि:दंशित : । न अहं कर्तेति विश्वास अमृतम् पीत्वा सुखी भव ॥८॥ ‘कर्ता मैं हूँ ‘ यह समझ कर काले नाग के दंश से तू है डसा ‘मैं नहीं कर्ता ‘ समझकर विश्वास-अमृत पान कर तू हो सुखी ॥८॥ Paavan Teerth