ग़ज़ल, अर्ज़ किया है- तुम ग़रीबों के घर जलाने लगे इतनी नफ़रत कहाँ से लाने लगे//1 तू तड़ाके पे आ गये इकदम अपनी औक़ात तुम दिखाने लगे//2 तुमने भी दूरियां बढ़ा ली हैं तुम भी अब बात को छुपाने लगे//3 बज़्म-ए-शो'रा में लग गयी आदत खाली बैठे थे,मुँह चलाने लगे//4 चुप थे,जागे थे जब तलक,लेकिन नींद आते ही बड़बड़ाने लगे//5 कौन सी रस्म है ये उल्फ़त की बोसा माँगा था,आज़माने लगे//6 राज़,ख़ाली थे हम भी क्या करते घर पे दो पैग ही लगाने लगे//7