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A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
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7:57 PM
Article Published by : PAVAN KUMAR SHARMA,' PAAVAN &MAAHIR
आदाब दोस्तो, आज हम जो मिसरा-ए-तरह लेकर आए हैं वो उर्दू अदब के बेहतरीन शायर जॉन एलिया साहिब की ग़ज़ल से लिया गया है. उम्मीद है आप सभी इस आयोजन में हमेशा की तरह बढ़ चढ़कर हिस्सा लेंगे. प्रस्तुत है आज के तरही मुशायरे का सम्पूर्ण विवरण- मिसरा-ए-तरह का विवरण- ------------------------------------ मापनी: 2122-1212-22 ------------------------------------ अरकान 👇: फ़ाइलातुन-मुफ़ाइलुन-फ़ेलुन ------------------------------------ बह्र 👇: बह्रे ख़फ़ीफ़ मुसद्दस मजनून अब्तर/महज़ूफ़ मुसक्किन ------------------------------------ मिसरा/शेर-ए-तरह 👇: 'ज़ब्त कर के हँसी को भूल गया ------------------------------------ पूरा मिसरा/शेर-ए-तरह 👇: ज़ब्त कर के हँसी को भूल गया मैं तो उस ज़ख़्म ही को भूल गया// ------------------------------------ पूरा मिसरा/शेर-ए-तरह की तक़तीअ, ज़ब्त कर के/ हँसी को भू/ ल गया मैं तो उस ज़ख़्/ म ही को भू/ ल गया // ------------------------------------ मतला एवं अन्य शेर के सहित पूरी ग़ज़ल ज़ब्त कर के हँसी को भूल गया, मैं तो उस ज़ख़्म ही को भूल गया//1 ज़ात-दर-ज़ात हम-सफ़र रह कर, अजनबी अजनबी को भूल गया//2 सुब्ह तक वज्ह-ए-जाँ-कनी थी जो बात मैं उसे शाम ही को भूल गया//3 अहद-ए-वाबस्तगी गुज़ार के मैं, वज्ह-ए-वाबस्तगी को भूल गया//4 सब दलीलें तो मुझ को याद रहीं, बहस क्या थी उसी को भूल गया//5 क्यूँ न हो नाज़ इस ज़ेहानत पर, एक मैं हर किसी को भूल गया//6 सब से पुर-अम्न वाक़िआ'ये है, आदमी आदमी को भूल गया//7 क़हक़हा मारते ही दीवाना, हर ग़म-ए-ज़िंदगी को भूल गया//8 ख़्वाब-हा-ख़्वाब जिस को चाहा था, रंग-हा-रंग उसी को भूल गया//9 क्या क़यामत हुई अगर इक शख़्स, अपनी ख़ुश-क़िस्मती को भूल गया//10 सोच कर उस की ख़ल्वत-अंजुमनी, वाँ मैं अपनी कमी को भूल गया//11 सब बुरे मुझ को याद रहते हैं, जो भला था उसी को भूल गया//12 उन से वा'दा तो कर लिया लेकिन, अपनी कम-फ़ुर्सती को भूल गया//13 बस्तियो अब तो रास्ता दे द, अब तो मैं उस गली को भूल गया//14 उस ने गोया मुझी को याद रखा, मैं भी गोया उसी को भूल गया//15 या'नी तुम वो हो वाक़ई?हद है, मैं तो सच-मुच सभी को भूल गया//16 आख़िरी बुत ख़ुदा न क्यूँ ठहरे, बुत-शिकन बुत-गरी को भूल गया//17 अब तो हर बात याद रहती है, ग़ालिबन मैं किसी को भूल गया//18 उस की ख़ुशियों से जलने वाला'जौन' अपनी ईज़ा-दही को भूल गया //19 जॉन एलिया --------------------------------------- ग़ज़ल का रेख़्ता लिंक- https://www.rekhta.org/ghazals/zabt-kar-ke-hansii-ko-bhuul-gayaa-jaun-eliya-ghazals?lang=hi ------------------------------------ विशेष_नोट- कुछ नहीं ------------------------------------ रदीफ़ 👇: 'को भूल गया' ------------------------------------ क़ाफिया की तुक 👇: 'ई' ------------------------------------ क़ाफ़िये का रेख़्ता लिंक- https://www.rekhta.org/qaafiya/rhyming-words-of-%E0%A4%A8%E0%A4%A6%E0%A5%80?pattern=*ii&lang=hi ------------------------------------ क़ाफ़िये के उदाहरण-नदी,कमी,आतिशी,बेबसी,उसी,नग़्मगी,अभी,इत्यादि --------------------------------------- कुछ फ़िल्मी गीत लय परीक्षण हेतु 👇: तुमको देखा तो ये ख्याल आय! दिले नादाँ तुझे हुआ क्या है! जब भी ये दिल उदास होता है! आप जिनके करीब होते हैं! ये मुलाकात इक बहाना है! आज फिर जीने की तमन्ना है! यूँ ही तुम मुझ से बात करती है! मैं हवा हूँ कहाँ वतन मेर! फिर छिड़ी रात बात फूलों की! तेरे दर पे सनम चले आये! आप जिनके करीब होते हैं! मेरी किस्मत में तू नहीं शायद! मापनी- 2122-1122-1122-22 आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक//१ आशिक़ी सब्र-तलब और तमन्ना बेताब दिल का क्या रंग करूँ ख़ून-ए-जिगर होने तक//२ तक़तीअ- आह को चा/हिए इक उम्/र असर हो/ने तक कौन जीता/ है तेरी ज़ुल्/फ़ के सर हो/ने तक//१ आशिक़ी सब्/र तलब औ/र तमन्ना/ बेताब दिल का क्या रं/ ग करूँ ख़ू/ ने जिगर हो/ने तक//२ मिर्ज़ा लिब कठिन शब्दों के अर्थ- असर-प्रभाव,नतीजा,छाप सर-जीता,किसी मुश्किल काम को पूरा करना सब्र तलब-सब्र माँगने वाला/वाली,जहां सब्र की ज़रूरत हो तमन्ना-इच्छा,ख़्वाहिश,आरज़ू,अभिलाषा बेताब-व्यग्र,बेचैन ख़ून-ए-जिगर-हृदय का रक्त,मर जाना,मार दिया जाना! (collection by Maahir)
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