होली की बहारें होली की बहारें देख बैठ गधैया पे, अन्दर ही खेलती जिनके हुए है जापे! इक दूजे की चड्डी लौंडे देते फाड़े, अँगिया में टेसू डाल जाटनियाँ दहाड़ें! जौलानियों पे है डोकरे भी ज़बरदस्त, बूढ़ियाँ हालाँके खा झकोलियाँ है पस्त! मौलवी ने मार लिया गूजरी का गूझा, गूजरी ने चूम लिया रेपटा ना सूझा! नौब्याहा गाल सालियों से देता रगड़े, दुल्हन देवर का पकड़ इज़ारबंद झगड़े! सुसरे का ये हाल है समधन पे अड़ा है, होलियों से पहले ही दिल आया पड़ा है! फापाकुटनियों का निकल पड़ा कारोबार, झाबड़झल्ले तक पलंग तोड़ने तैयार! झाड़ हो के लिपट जाऊँगा अबके होली, आती है देखो मेरी पलक का फफोला! ढोकना शेर सा अम्बरजानी तू उसको, केसर से रंगना चूचियाँ कहेगी किसको! मावे की मुठिया खाई न भांग की गोली, उस गेलचोदे की बोलो क्या हुई होली! 'Paavan' * जौलानियों पे आना या जौलानियों पे होना : जोश में आना। * डोकरे-बूढ़े। * फापाकुटनी-कुट्टनी,प्रेमी और प्रेमिका को मिलानेवाली रसिकमिज़ाज औरत। * झाबड़झल्ला-ढीलाढाला। * झाड़ होके लिपटना-कसकर लिपट जाना,छुड़ाए न छोड़ना। * ढोकना-छिपकर शिकार करना। * गेलचोदा-मालवा से सूरत बम्बई पर्यन्त स्त्रीपुरुषों में समानरूप से प्रचलित नर्म गाली।