skip to main |
skip to sidebar
RSS Feeds
A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
![]() |
![]() |
8:43 PM
Article Published by : PAVAN KUMAR SHARMA,' PAAVAN &MAAHIR
ऐसी चुप्पी.....सन्नाटा-वोटों के पड़ गये लाले। मेरे चुनाव क्षेत्र में जाते ही जो रंग आता था, मेरा रूप सौन्दर्य, मेरी फिल्मों की प्रशंसा का गीत, हर कोई गुनगुनाता था। मेरा वोट इस क्षेत्र में सुरक्षित की श्रेणी में मुझे आश्वास्त करता रहा। मेरा उत्साह बढ़ाया गया-आंखों के चुनाव चिन्ह पर वोट देंगे...निशान लगाने का हर कोई दावा करता रहा... हे सखि फिल्मी अभिनय में, नाम कमा कमा कर, धन इकट्ठा करके....उसे फूंकने के लिए जब मुझे बार बार बढ़ावा दिया तो मैं भी इस क्षेत्रा में कूद पड़ी। थाली के बैंगन और बेपेंदी के लोटों में, स्थान बना लेने की पुरानी आदत फिर सिर चढ़ी। आंखों के चुनाव चिन्ह पर9 जब चुनाव आयोग ने स्वीकृति दे दी तो मेरी खुशी का ठिकाना न रहा। मेरी आंखें ही मेरी पहचान है...अपने मतदाताओं को जा जाकर समझाना पड़ा.... घर में कुरूक्षेत्र में हर रोज़ नई लड़ाई मोल लेकर मैंने लड़ने का अभ्यास किया। हर किसी को भाषण दे देकर, बहस कर कर के स्वयं को चुनाव की इस रणभूमि के लिए तैयार किया। सच कहूं तो सखी! चुनाव के रणबांकुरे अन्य योद्धाओं से कम नहीं बल्कि उनका मोर्चा अधिक जोखिम से भरा है। कब कौन कहां से वार कर दे...कौन-कौन सा विस्फोटक किस किस में भरा है। यह अनुमान लगाना भी कठिन है। हाय सखि मेरा मन उदास है-खिज है। मैंने तो आंखे दिखा दिखा कर आंखों का महत्व समझाया। हाथ के महत्व से परिचित पीढ़ी को मज़ेदार ढंग से बरगलाने के लिए कवि लेखक नेता अभिनेता ...सबको बुलाया। रूपया पानी की तरह बहाते हुए....स्नेह प्यार की गागर छलकाई। पर्दा प्रथा-जौहर प्रथा....सभी प्रथाएं मिटाने की दी दुहाई... ‘साधो....ऐसो सिर्फ निशाना....। ऐसा तीर चलावो....प्राणी आंख ही बने निशाना। कजरारे...कजरारे गाने वालों की टोलियां आई....काजल की कोठरी में कैसो ही सयानो जाय.....कालिख लगेगी हे....विपक्ष ने जब यह बोली लगाई। तो मैंने भरी भीड़ में, काजल के धब्बे हटाने वालों के डिमान्स्टेªशन दिलवाये/ आंखों के मुफ्त आपरेशन के बोर्ड टांगे, शिविर लगवाये। कवियों की टोली ने ‘मतदान’ महाकल्याण का शंख फूंका। मुझे भी‘मत’ का महत्व समझा समझा कर भाषण देने का नया तरीका सूझा। ‘हां’ तो भाइयों...वगैरा वगैरा। ऐरा गैरा नत्थूखैरा हमने सबके उद्धार का बीड़ा उठाया है। और आपके दिमाग से विपक्ष का कीड़ा हटाया है। आप सब बस मिल कर कहें। हम एकमत हैं....हममें एकमत रहे। भूरेलाल कवि ने भी कविता से यही मूलमन्त्र समझाया है.....एकमत रहे। एकमत रहें....यहीं बार बार दोहराया है...वोटर का जन्म बहुत कठिनाई से होता है जहां बच्चा केवल नौ मास में पैदा हो जाता है वह वोटर पैदा करने में अट्ठारह वर्ष लग जाते हैं, अट्ठारह वर्ष बाद ही आप बिना पिये ही मतवाले बन जाते हैं। हम हिन्दी को भी सुधारेंगे और जो आप आंशिक बने यहां वहां डोलते थे उसकी बिन्दी हटाकर आशिक बना देंगे। देश में नैनो से नैन तक की आपकी पदयात्रा बदलेगी....आश्वासनों के पुलिन्दें वादों की झड़ी की प्रत्येक शर्त पूरी होगी। आप रोटी कपड़ा-खाना चाहते हैं आपको वही खाने को मिलेगा। मकानों की ‘जगह’-योजनाएं ही योजनाएं। हर साल दो जून की रोटीहम खिलायेंगे....और....कहते....ख्यालों की इस नगरी से वह कूच कर अपनी स्थिति में आ पहुंची। कविवर ने तब यों ली--चुटकी-‘महोदया हिन्दी ने ही शायद किया हो सारा गड़बड़ घोटाला...क्योंकि गलत जगह अर्द्धविराम या विराम के चक्कर ने शायद आपकी लुटिया को डुबो डाला। हम तो गली गली े दोहराते रहे ‘आवश्यक है हमारा मिलुलकर रहना एकमत होना। हां तो भाइयों-एक, मत होना। एक मत होना... हमने तो आपको पहले ही जता दिया था-इसी क्षेत्र में आपके सब मत वाले हैं-पर साथ में यह भी तो उक्ति बार बार कही.... ‘मतवाले’ सभी हैं.....पर ‘मत’ वाला, एक नहीं.....यह जो तथाकथित प्रशंसा के पुल बांधने वाले सिविल इंजीनियरों ने.....पुल जोड़ा था.....उसमें ‘जी’ ‘जी’यानि ‘टू’ जी का स्कैम वाला ‘जी’ ‘जी’ था और इन पुलों में भी भानुमति के कुनबे, का कहीं की ईंट-कहीं का रोड़ा था। आप जीती है...इसके लिए अभी प्राणवायु का ही प्रयोग करें /चुनाव की घोषणा भी ‘आप जीती हैं की उद्घोषणा है। जीने की प्रक्रिया सर्वदा सामान्य रखें क्योंकि जीत हार में भेद नहीं। इसीलिए बस खेद नहीं.....। काम बनेंगे या बिगड़ेंगे.....पर जीत के बाद भी तो -‘हार’ ही गले पड़ेंगे। Pavan Kumar 'Paavan'
![]() |
Post a Comment