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A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
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8:30 PM
Article Published by : PAVAN KUMAR SHARMA,' PAAVAN &MAAHIR
कॉमेडी ट्रेजेडी हमारे जीवन में जो सुख दुख है,साहित्य की भाषा में उसे कॉमेडी ट्रेजेडी ही कहा गया है । हमारा भारतीय दर्शन सुख और आनंद पर आधारित है,उसमें दुख के लिए कोई स्थान नहीं है,इसीलिए हमारी अधिकांश संस्कृत रचनाएं सुखांत ही हैं । ग्रीक ट्रेजेडी के अलावा शेक्सपियर ने सुखांत और दुखांत दोनों नाटकों की रचना की । अनुवाद की मजबूरी देखिए कॉमेडी को अगर हास्य कहा गया है तो ट्रेजेडी को त्रासदी । हमने सुख और दुख,हास्य और विसंगति को मिलाकर व्यंग्य का सृजन कर दिया । हास्य और करुण दोनों को हमारे आचार्यों ने रस माना है,लेकिन व्यंग्य का नवरस में कोई स्थान नहीं है । आप व्यंग्य को ना तो पूरा हास्य ही कह सकते हैं और ना ही सिर्फ विनोद । लेकिन फिर भी हास्य और विनोद के बिना व्यंग्य अधूरा है ।। व्यंग्य को तो आप कॉमेडी भी नहीं कह सकते,और ट्रेजेडी तो यह है ही नहीं । ले देकर एक शब्द satire है,जो व्यंग्य का करीबी लगता है । साहित्य की विधा होते हुए भी व्यंग्य अपनी अलग पहचान बनाए रखता है । व्यंग्य को हास्य की चाशनी पसंद नहीं,बस,थोड़ा मीठा हो जाए । नशे के साथ चखने की तरह अगर रचना में कुछ पंच हों तो व्यंग्य थोड़ा नमकीन भी हो जाता है । हास्य कवियों की तरह यहां ठहाके नहीं लगते,पाठक बस या तो मंद मंद मुस्कुराता है,अथवा कभी कभी उसकी हंसी भी छूट जाती है । एक हास्य कविता की तुलना में रवींद्रनाथ त्यागी के व्यंग्य पाठ में श्रोता को अधिक आनंद आता है । जिन पाठकों ने P.G. Wodehouse अथवा मराठी लेखक, पु.ल. देशपांडे को पढ़ा है, वे अच्छी तरह जानते हैं,मृदु हास्य की फुलझड़ी किसे कहते हैं ।। हास्य और विनोद व्यंग्य के आभूषण हैं,उनके बिना व्यंग्य केवल कड़वा नीम है । व्यंग्य करेले के समान कड़वा होते हुए भी,जब मसालों के साथ बनाया जाता है,तो बड़ा स्वादिष्ट लगता है । हमारे देश की राजनीति जितनी मीठी है उतनी ही कसैली भी ।रिश्वत,भ्रष्टाचार, अफसरशाही,दलबदल, कुर्सी रेस और कसमों वादों का वायदा बाजार थोक में विसंगति पैदा कर देता है । एक अच्छा व्यंग्यकार जब चाहे,इसकी जुगाली कर सकता है । थोड़े गम हैं,थोड़ी खुशियां । घर गृहस्थी का झंझट,नौकरी धंधे की परेशानी,तनाव और दुख बीमारी के वातावरण में हम हंसना और ठहाके लगाना ही भूल गए हैं ।अब हमें बच्चों की तरह गुदगुदी नहीं चलती । जीवन में कुछ तो ऐसा हो,जिससे हमारे चेहरे पर हंसी लौट आए,कोई ऐसी व्यंग्य रचना जो हमें कभी गुदगुदाए तो कभी हंसकर ठहाके लगाने पर बाध्य करे । कभी सुभाष चन्दर की अक्कड़ बक्कड़ हो जाए तो कभी समीक्षा तेलंग का व्यंग्य का एपिसेंटर । काश कोई हमारे घर लिफाफे में कविता ही डाल जाए । हंसी खुशी ही तो हमारे जीवन की कॉमेडी है,ग्रीक ट्रेजेडी अलविदा,मैकबेथ,ओथेलो,हेमलेट अलविदा ।। Paavan Teerth
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