ग़ज़ल कहने की कला सीखने का मूलमंत्र क्या है? दोस्तो, कृपया ध्यान दें,आज मैं फिर से वही बात आप सबों को बतलाने वाला हूँ जो पहले भी कई बार बता चुका हूँ!चाहे किसी की ज़मीन पर ग़ज़ल लिखनी हो या ख़ुद की नई ज़मीन पर ग़ज़ल कहनी हो,प्रश्न ये उठता है कि लिखने की शुरुआत कहां से की जाए? लोग कहते हैं कि कोई ख़्याल आ गया और मैं ग़ज़ल लिखने लगा या लिखने लगी!इसमें कहीं कुछ भी ग़लत नहीं है,बस जहां तक ग़ज़ल कहने की बात है,हमें इस बात का ध्यान रखना है कि हम अपने विचार या चिंतन की प्रक्रिया किसी क़ाफ़िये और रदीफ़ के इर्द-गिर्द ही रखें,कल्पना के एकदम से खुले मैदान में नहीं!जब हम ऐसा करने की आदत डाल लेंगे तब हमारे लिए ग़ज़ल कहना आसान हो जाएगा! अब जो अभ्यास यहां दिया गया है,उसके क़वाफ़ी होंगे-सभी,नदी,इसी,किसी,आदमी,बेबसी इत्यादि और रदीफ़ आपको पता है कि,"को भूल गया"है!अब ग़ज़ल कहने के क्रम में आपका पहला क़दम होगा कि आप क़ाफ़िया और रदीफ़ की युगलबंदी करें,उनके जोड़े बनाएं जैसे- नदी को भूल गया, सभी को भूल गया, किसी को भूल गया, अजनबी को भूल गया, आदमी को भूल गया, ज़िंदगी को भूल गया, कली को भूल गया, दोस्ती को भूल गया, दुश्मनी को भूल गया, बे बसी को भूल गया,इत्यादि. ज़ाहिर सी बात है कि आपकी ग़ज़ल लिखने की प्रक्रिया- शेर लिखने से शुरू होती है, शेर लिखने की प्रक्रिया मिसरा लिखने से शुरू होती है, मिसरों को लिखने की प्रक्रिया सानी मिसरा लिखने से शुरू होती है,और सानी मिसरा लिखने की प्रक्रिया क़ाफ़िया और रदीफ़ की जोड़ी से शुरू होती है! अर्थात - आपके द्वारा ग़ज़ल लिखने की प्रक्रिया क़ाफ़िया और रदीफ़ के व्यावहारिक जोड़े बनाने एवं उन जोड़ों के इर्द-गिर्द सानी मिसरे बनाने और सानी मिसरे के लिए उचित ऊला मिसरा बनाने से शुरू होती है! यदि आपने अपने मन को इस प्रक्रिया को फ़ॉलो करने हेतु प्रशिक्षित कर लिया तो समझ लीजिए कि ग़ज़ल कहने-लिखने की दिशा में आप बहुत तेज़ी से बढ़ना शुरू कर देंगे!ये वो मूल मंत्र मैं आपको दे रहा हूँ! Collected By'Maahir'