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A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
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8:11 PM
Article Published by : PAVAN KUMAR SHARMA,' PAAVAN &MAAHIR
मोल ग़ज़ल का कहने पर है! क्या छोटी,क्या बड़ी बहर है! खेल क़ाफिया-रदीफ़ का है, सिर हिला,बोलता शायर है। चार पहर का ही यह जीवन, प्रेम का किन्तु आठ पहर है! हाट बिके ना खेत ही उपजे, पर रहता सब के सर पर है! कोई शांत समुंदर सम,कोई पर झरझर झरता निर्झर है! मन को प्रेम का वह हुनर है, तन कहीं,वो किसी शहर है! आँख है ढूंढती रूप-सौंदर्य, मन रमता दिल के अंदर है! राम,कृष्ण सभी रमे प्रेम में, प्रेमधुन डूबा शिवशंकर है! राधा का मुरलीधर जो,वही मीरा का नटवर,गिरिधर है! प्रेम में सिया जाती वन को, लक्ष्मण जीए हो अनुचर है! एक प्रेम जिह्वा पर थिरके, मौन एक मुंह के अन्दर है! प्रेमी रूठें,छूटें,बिछड़ें भले, प्रेम है अजर,प्रेम अमर है! प्रेम है सबको,प्रेम सभी में, पर रहस्य यों,ज्यों ईश्वर है! Paavan/Maahir
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