प्रस्तुत हैं कुछ मुतफ़र्रिक शेर- ध्यान देना है ज़मीनी असलियत पर अब, ज़िन्दगी किसको मिली है आसमानों में? दूल्हे-बाराती सभी करके सुनिश्चित, वो बजाने को हमें बस ढोल देंगे। क्यूँ क़यामत के मुझे तुम,अद्ल से बहका रहे, ज़िन्दगी में भी,गुनाहों की सज़ा है दोस्तो। रंग-रोगन से बहुत दिन दिल बहल सकता नहीं, मान्यवर,कुछ सादगी से दिल लगा के देखिए। ज़िन्दगी की जुस्तजू में,आ गई जाने किधर? पत्थरों के जंगलों में,आदमी ढूँढे,नज़र। खोजता रब को रहा बाहर ही,जो, ख़ुद को धोख़ा दे रहा वो दोस्तो। इश्क़ में इन्कार वो करते रहे, नासमझ,उनका इशारा और है। चाहतों की लौ जलानी चाहिए, ज़िंदगी की लौ बचाने के लिए। अति सरलता से भी किसको मिल सका ? धान्य-धन जीवन चलाने के लिए।- पारपत्रों पर मिलीं सुविधाएं उनको, दरबदर तो बी पी एल वाले हुए हैं। 'Maahir'(collection)