skip to main |
skip to sidebar
RSS Feeds
A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
![]() |
![]() |
7:27 PM
Article Published by : PAVAN KUMAR SHARMA,' PAAVAN &MAAHIR
महा कवि नीरज की कविता! करें जब पाँव खुद नर्तन, समझ लेना कि होली है हिलोरें ले रहा हो मन, समझ लेना कि होली है किसी को याद करते ही अगर बजते सुनाई दें कहीं घुँघरू कहीं कंगन, समझ लेना कि होली है कभी खोलो अचानक , आप अपने घर का दरवाजा खड़े देहरी पे हों साजन, समझ लेना कि होली है तरसती जिसके हों दीदार तक को आपकी आंखें उसे छूने का आये क्षण, समझ लेना कि होली है हमारी ज़िन्दगी यूँ तो है इक काँटों भरा जंगल अगर लगने लगे मधुबन, समझ लेना कि होली है बुलाये जब तुझे वो गीत गा कर ताल पर ढफ की जिसे माना किये दुश्मन, समझ लेना कि होली है अगर महसूस हो तुमको, कभी जब सांस लो 'नीरज' हवाओं में घुला चन्दन, समझ लेना कि होली है! Paavan.
![]() |
Post a Comment