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A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
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7:53 PM
Article Published by : PAVAN KUMAR SHARMA,' PAAVAN &MAAHIR
मंज़िल से ही सफ़र में नहीं आशना*हुआ, काँटे चटान गर्द से भी साबिक़ा हुआ/1 (*परिचय,सामना) मुंसिफ़ ने हर सुबूत को तस्लीम*कर लिय!, फिर क्यों न मेरे हक़ में बता फ़ैसला हुआ/2 (*स्वीकार) या तो सुबूत दे कि तेरा क़त्ल हो गया, या मान ले कि साथ तेरे हादिसा हुआ/3 कुछ साँप रेंगते हुए जंगल में घुस गये, तफ़्सील*से लकीरों का फिर तब्सिरा**हुआ/4 (*विस्तार **समीक्षा) कुछ ख़त पुराने और ये दीवान छोड़ कर, जाता हूँ मैं ये माल तमाम आप का हुआ/5 इक बदहवास शख़्स हुआ फिर से रू-ब-रू 'maahir'आइने को देख के हैरत-ज़दा हुआ/6 'Maahir'(collection)
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