नई-व्यवस्था ज़िन्दगी को जानते वो मानते, सुख पे सबका जन्म से अधिकार है! दुख दिखा करता जगत में जो कह, दोस्तो वो ज्ञान का प्रतिकार है! भूख से मरने न पाए अब कोई, सभ्यता सोचे सभी के स्वास्थ्य की, हो सभी के वास्ते शिक्षा सुलभ, आयकर से हो व्यवस्था ख़र्च की! जो भी बढ़ना चाहता जिस क्षेत्र में, मिल सकें अवसर तरक्की के उसे! भर सके वो ॠण को जब हो आय तब, आय के अनुपात में ही कर लगे! हो प्रशिक्षण की व्यवस्था कारगर, मिल सके सबको यथोचित काम भी! कर चुकाने की व्यवस्था हो सरल, कौशलों का हो उचित सम्मान भी! खाद्य, सेहत, ज्ञान, सबको हो सुलभ, और इनमें वृद्धि भी दिन-रात हो! ये व्यवस्था है ज़रूरी दोस्तो, शासकों का आज से ये काम हो! धन न संचित कुछ घरानों में रहे, आमजन के वास्ते उपलब्ध हो! सोच वैज्ञानिक रहे इंसान की अंधविश्वासों का जड़ से नाश हो! रास्ता है ज़िन्दगी का बस यही, व्यक्ति को अभिव्यक्ति का अवसर मिले! फूल सारे रंग के जग में खिलें, चहचहाता मित्र ये उपवन रहे! 'Paavan'