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A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
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5:16 PM
Article Published by : PAVAN KUMAR SHARMA,' PAAVAN &MAAHIR
कविता : खंडहर ************* गांव छूटा तो कितना कुछ छूट गया, कितनी छोटी-बड़ी चीज़ों से, बना-बनाया संबंध टूट गया! छूटा ओसारा,आंगन,दरवाज़ा, पोखर,कुआं,चापाकल कहे आजा। मैना,गुमैना,कठखोद्दी और पड़ोकी, सुग्गा,नीलकंठ,धोबिन,सिल्ही,बनमुर्गी, बगुले,गरुड़ कुछ भी तो यहां नहीं दिखते, बकोध्यानं का हितोपदेश कैसे बच्चे सीखते! चाचा,ताऊ,फूफा,मौसा अंकल के पेट में आ गए चाची,ताई,फूफी,मौसी आंटी की चपेट में समा गए; बच्चे अब जानते हैं ज़्यादा से ज़्यादा दादा का नाम, उनके पीछे के पुरखे से,वे अपना संबंध तुड़वा गए। गांव में बहुत-कुछ भी नहीं था, पर जो था,वो सब अनोखा ही था, मिट्टी के कितने करीब थे,कितना मोल था मिट्टी का! मिट्टी की हांडी,कड़ाही,रोटपक्का,सरपोश भी मिट्टी का; घर,दीवार,पाया होते थे मिट्टी के,मिट्टी-मिट्टी थी हर कहीं, अब बड़े शहरों में तो,गमले में डालने को भी मिलती नहीं! बहुत कुछ है शहर में, रोड-जाम,रेल-जाम जैसा, वी आई पी के कारण रास्ता-बदइंतज़ाम जैसा, हादसा,झपटमारी,ब्लैकमेलिंग,अपहरण जैसा, कदम-कदम पर हो रहे मानवीय-मूल्यों के क्षरण जैसा! समझ में आता है अब, कि क्यों जाते थे कवि,शहर छोड़ गांव, क्यों अच्छा लगता था उन्हें धूल-धूसरित पांव, गांवों में सुख-दुःख मिश्रित साधना सा जीवन था, आदमी-आदमी के दुःख से था दुःखी,उनमें अपनापन था। हां,सच है हमारी तरह ही उन भावों ने भी छोड़ दिया है गांव, पक्की सड़कों के रास्ते जा,शहर ने जमा लिए हैं पांव, किन्तु,बचा है बहुत-कुछ,जो दिखता है गांव जाने पर, जैसे,"कभी भव्य इमारत थी यहां!" बोल उठते हैं खंडहर! 'Paavan Teerth'
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