प्रस्तुत है एक ग़ज़ल- मौत तो एक बार आती है, ज़िन्दगी रोज आजमाती है। सीखते पुस्तकों से हम बेशक़, पर अधिक ज़िन्दगी सिखाती है। आस्तिक-नास्तिक,कोईभी हो, ज़िन्दगी सब को आज़माती है जोश के साथ जो नहीं होती, नेक कोशिश वो हार जाती है। कोई जब रास्ता नहीं दिखता, रोशनी,तीरगी से आती है। ख़्वाब से लौट के भी आना है, याद ठोकर भी ये दिलाती है। अंश कुछ ब्रह्म का तो है मुझ में मेरी आवारगी जताती है। कुछ कदम साथ थे जहाँ हम-तुम, राह वो याद कुछ दिलाती है। आज तक हम समझ नहीं पाए, याद जाती कहाँ,जो आती है। भूलने का अहद कराया था, आज फिर उसकी याद आती है। आजमाने से क्या मिला यारो, ज़िन्दगी तल्ख़ होती जाती है। दिल लगी, दिल्लगी नहीं “maahir” इक हँसी सारे गम भुलाती है। 'Maahir'