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A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
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7:19 PM
Article Published by : PAVAN KUMAR SHARMA,' PAAVAN &MAAHIR
प्रस्तुत है एक ग़ज़ल - आँख से ओझल है पर वो देखता है दोस्तो जो दिया उसने वो कर्मों से सिवा है दोस्तो। ढूँढते हो क्या है मुझमें, मैं बताता दोस्तो, आत्मा, जल, क्षिति, गगन, पावक, हवा है दोस्तो। उसने पैगम्बर हैं भेजे पर न जाने क्यूँ यहाँ , आदमी अब तक गुनाहों में फँसा है दोस्तो। क्या कहीं अहसान उतरेगा ज़माने में कभी, उसने जो तुम को बिना मांगे दिया है दोस्तो। डूबते हो कर्म में जो मान के पूजा उसे, हर बुलंदी के लिए रास्ता खुला है दोस्तो। कोशिशों से ज़िंदगी में चैन- सुख संभव सभी , आदमी ने स्वर्ग धरती पर रचा है दोस्तो। कब कहा उसने कि फल पाओगे कर्मों का नहीं, पर यहाँ इंसान पंथों में फँसा है दोस्तो। वो कहाँ कहता कि जग को भूल कर पूजा करो , ये तो झंझट आप-हम ने ही रचा है दोस्तो। क्यूँ क़यामत के मुझे तुम अद्ल से बहका रहे ज़िंदगी सबसे बड़ी ख़ुद में सज़ा है दोस्तो। हाथ की रेखाएं सब बनती बिगड़तीं कर्म से, सब ने कर्मों से ही किस्मत को लिखा है दोस्तो। इश्क़ से दुनिया बनी है इश्क़ से क़ायम है ये, इश्क के ही नूर से हर दिल खिला है दोस्तो। एक ही जो नूर से उपजा है “maahir” विश्व ये, आज इंसां क्यों ये इंसां से जुदा है दोस्तो। अद्ल=न्याय
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