फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ साहिब की एक मशहूर ग़ज़ल है- आए कुछ अब्र कुछ शराब आए, उसके बाद आए जो अज़ाब आए! पेश है इसी ज़मीन पर कही ये ग़ज़ल,अर्ज़ किया है- इश्क़ में गर हमारे ताब आए, उसके भी हुस्न पे शबाब आए//1 फ़ेल मैं हो गया मुहब्बत में, मेरे नंबर बहुत ख़राब आए//2 उसने रक्खी ये शर्त मिलने ी, पहले दारू,मटन क़बाब आए//3 दुन्या कहती है इश्क़ है लेकिन उसके मुँह से भी कुछ जवाब आए//4 हिज्र की शब है आरज़ू मेरी जब भी नींद आए,उसका ख़्वाब आए//5 बस वो हो जाए बोसा-ज़न मेरा फिर जो आए तो इंक़िलाब आए//6 मिलने को आए जो भी कह दो उसे साथ लेकर ख़ुम-ए-शराब आए//7 तुमने बोये हैं ख़ार मिट्टी में और है आरज़ू गुलाब आए//8 इतनी ग़ज़लें लिखी हैं क्या बोलूँ मुझमें इल्हाम बेहिसाब आए//9 उसका बोसा भी लें लूँ मैं गर वो मिलने को बेनक़ाब आए//10 ताब- शक्ति,ज़ोर,ताक़त,बल,सामना,विरोध करने की शक्ति,मजाल या हिम्मत,सामर्थ्य,मक़्दूर,आराम,चैन ज्योति,आभा,चमक,दीप्ति,जैसे:मोती या हीरे की ताब! शबाब-उठती जवानी,तरूणाई,युवाकाल,यौवनकाल,युवावस्था,जवानी,यौवन,तारुर्म्य,किसी वस्तु या भाव की उत्तम अवस्था! बोसा-ज़न-चूमनेवाला,चुंबन करने वाला! इंक़िलाब-उलट-पलट,परिवर्तन,स्थित उलटना,समय का उलट-फेर,किसी स्थित की विपरीत में होने की अवस्था,तबदीली,क्रांति ख़ुम-ए-शराब-शराब से भरा मदिरा का मटका अथवा पीपा ख़ार-काँटा इल्हाम-ईश्वर की ओर से हृदय में आई हुई बात,ईश्वरीय ज्ञान या प्रेरणा बोसा-प्रेम के आवेग में होने से(किसी दूसरे के)गाल,होंठ आदि अंगों को स्पर्श करने या या दबाने की क्रिया,चुंबन में होठों से एक स्पर्श,चुम्मा,चुंबन बेनक़ाब-जिसपर नक़ाब या परदा न हो,जिसकाचेहरा ढका न हो! 'maahir'(collected by)