skip to main |
skip to sidebar
RSS Feeds
A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
![]() |
![]() |
8:11 PM
Article Published by : PAVAN KUMAR SHARMA,' PAAVAN &MAAHIR
क़ाफ़िया के साथ रदीफ़ निभाना- ग़ज़ल लिखने की प्रक्रिया में एक और बहुत महत्वपूर्ण बात है वो है क़ाफ़िया के साथ रदीफ़ को निभाना अर्थात क़ाफ़िया और रदीफ़ के बीच तालमेल बिठाना!ये तालमेल सिर्फ़ व्याकरण की दृष्टि से नहीं बल्कि अर्थ-संगतता की दृष्टि से भी आवश्यक है!आइए,इसे एक उदाहरण के द्वारा समझने के लिए हम आल की तुक पर कुछ क़ाफ़िये देखते हैं,मसलन सवाल,ख़्याल,जमाल इत्यादि.इस तुक पर ग़ालिब साहब की एक मशहूर ग़ज़ल की क़ाफ़िया-रदीफ़ की जो जुगलबंदी है वो है-'ख़्याल अच्छा है','साल अच्छा है','कमाल अच्छा है' इत्यादि!अब अगर इसी क्रम में कोई ये लिखे कि उसका,'जमाल अच्छा है' तो इसका क्या अर्थ होगा?जमाल का जो सर्वसामान्य अर्थ है वो है सौंदर्य,सुंदरता,ख़ूबसूरती,इत्यादि!अब यदि मैं कहता हूँ कि उसका जमाल अच्छा है,या मेरा जमाल अच्छा है,या किसी का जमाल अच्छा है तो इसका अर्थ होगा कि उसका या मेरा या किसी का सौंदर्य अच्छा है!किसी के सौंदर्य को या स्वयं सौंदर्य को अच्छा अथवा बुरा कहने का अर्थ कितना अटपटा होगा!निश्चय ही ये भाषा के साथ कथ्य का ग़लत प्रयोग है,यद्यपि यहाँ व्याकरण का कोई दोष नहीं है!किसी के जमाल के बारे में कुछ कहना,सोचना या लिखना अच्छा-बुरा हो सकता है,मगर सीधे-सीधे किसी के जमाल को हम अच्छा-बुरा नहीं कह सकते हैं!मेरा ख़्याल है कि इस उदाहरण के द्वारा क़ाफ़िया के साथ रदीफ़ निभाने की बात को समझा जा सकता है. 'Maahir'(collected by)
![]() |
Post a Comment