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A personal blog by Pavan Kumar "Paavan"
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1:51 PM
Article Published by : PAVAN KUMAR SHARMA,' PAAVAN &MAAHIR
प्रस्तुत है एक ग़ज़ल- कितनी गड़बड़ फैलाते हैं अंधों में ये काने लोग। समझ न पाते ख़ुद, वो भी तो, आते हैं समझाने लोग। कुर्सी पाने पर कैसे ये हो जाते बेगाने लोग, वक़्त पड़ा तो काम न आए कुछ जाने पहचाने लोग। भेदभाव, शोषण, मक्कारी को देकर पंथों का रूप, सीधे-साधे इंसानों को आ जाते बहकाने लोग। भू, जल, हवा, गगन, अनल का लालच में करके उपभोग, मुस्तक़बिल बर्बाद कर रहे, कितने हैं दीवाने लोग। बहुत कशिश है उस ग़लती में जो क़स्दन हम करते थे, बचपन की यादों में खोकर लगते हैं शर्माने लोग। लालच के अंधों को भाता कब सुख-चैन ज़माने का, अमन-चैन गर टिकता कुछ दिन, आ जाते भड़काने लोग। प्रकृति के सब नियम क़ायदे हैं जन-जीवन के हक़ में, नियम तोड़ते हैं जब भी, तब भरते हैं हर्जाने लोग। मुस्तक़बिल=भविष्य 'Maahir'
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